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________________ 296] आयु पुरुष स्त्री औसत इन्हेलर वर्ग की आवश्यकता 16-30 25 10 दमा मे प्रेक्षा के प्रयोग 31-45 5 10 प्रेक्षा के प्रेक्षा के पहले बाद 4 बार 2 बार 6 बार [ जैन विद्या और विज्ञान स्पाइरोमीट्री FEV प्रेक्षा के प्रेक्षा के पहले बाद 60 60 प्रतिशत प्रतिशत 50 60 4 बार प्रतिशत प्रतिशत प्रतिशत दमा के दौरों में कमी 50 प्रतिशत 33 उदर रोग मौलिक इच्छाओं में पहली है भोजन की इच्छा। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है: क्योंकि हमारे सारे शरीर की क्रियाएं भोजन के द्वारा संचालित होती है। हम जो खाते हैं उसका एक रसायन बनता है और वह रसायन हमारे जीवन की प्राण ऊर्जा बनकर शरीर तंत्र का संचालन करता है। विभिन्न उदर रोग भोजन की अनियमितता से ही होते हैं। वृद्ध लोगों के लिए गरिष्ठ भोजन उपयोगी नहीं माना गया है। जैन धर्म में रात्रि भोजन का निषेध है । देखा गया है कि भोजन करने के बाद यदि 3 घण्टे तक नहीं सोया जाये तो पाचन क्रिया पूर्ण हो जाती है। लेकिन आज उदर रोगों में वृद्धि होती जा रही है। गैस, अपच, अल्सर, हाइपरएसीडिटी तो बच्चे भी पहचानने लगे हैं। इन बीमारियों का कारण स्पष्ट रूप से नहीं पता लगता है लेकिन अधिक अम्ल का बनना, जंक फूड, फास्ट फूड, अधिक शराब का सेवन, धूम्रपान व तनाव के कारण हो सकता है। इसके अतिरिक्त कम शारीरिक श्रम गैस बनने का कारण हो सकता है। लंबे समय तक इन बीमारियों का बना रहना कैंसर का पूर्व लक्षण भी हो सकता है और कैंसर की भयावहता तो सर्वविदित है ही । इसके उपचार के लिए यह जरूरी है कि सात्त्विक भोजन किया जाए. समय पर खाना खाया जाए और तनाव से मुक्ति पाई जाए । प्रेक्षा से पाचन क्रिया में सुधार आचार्य महाप्रज्ञ ने उदर रोगों से बचने व ठीक होने के लिए प्रेक्षाध्यान की बात कही है। प्रेक्षाध्यान शिथिलीकरण से आरम्भ होता है और शिथिलीकरण
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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