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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ]
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धुआं लेकिन एक अन्य कारण है इमोशन। बढ़ता तनाव, भागदौड़ की जिंदगी ने भी इस बीमारी को बढ़ाया है। दमा के अन्य कारण हैं - एलर्जी (Allergy) व आनुवंशिकता। देखा गया है कि ल्यूकोट्राइनस का स्राव दमा का कारण है और ल्यूकोट्राइनस न केवल एलर्जी से बनते हैं बल्कि तनाव के कारण भी बनते हैं। दमे की बीमारी श्वास की अत्यन्त जटिल बीमारी है। इस बीमारी के लिए आचार्य महाप्रज्ञ ने प्राणायाम को बहुत उपयोगी बताया है। श्वासप्रेक्षा भी इस बीमारी के उपचार में काफी सहायक है। विभिन्न प्रयोगों से देखा गया है कि भावों को नियंत्रित करने पर मरीजों में दमा के दौरे नहीं होते। अचानक जो स्वभाव में परिवर्तन होता है वह ल्यूकोट्राइनस की मात्रा बढ़ा देता है और श्वास की तकलीफ शुरू हो जाती है। श्वासप्रेक्षा के प्रयोग ___ श्वास प्रेक्षा के प्रयोग करीब 50 मरीजों पर जोधपुर के हॉलिष्टिक सेन्टर पर किए गए। वहां पाया गया कि अधिकांश व्यक्तियों में न केवल दमा के दौरो की संख्या कम हुई साथ ही उनका वेग भी कम हो गया। इस प्रयोग में पाया गया कि 60 प्रतिशत मरीज स्वयं को स्वस्थ महसूस करने लगे, कार्य क्षमता में वृद्धि हुई, स्टीरायड इन्हेलर की मात्रा में कमी तथा स्पाइरोमीट्री में भी सुधार हुआ। इस प्रयोग के परिणाम आगे की तालिका में दर्शाए गए
यह संभवतया मानसिक शान्ति और श्वसन नली की बार बार उत्तेजना (stimulation) से संभव हुआ होगा क्योंकि यह दो बातें ल्यूकोट्राइनस के स्राव को कम करती है। प्राणायाम व श्वास प्रेक्षा का उपयोग श्वास की अन्य बीमारियां यथा क्रोनिक बोन्काइटस तथा एम्फीसीमा (Emphysema) में भी काफी उपयोगी साबित हो सकता है। यह दोनों बीमारियां भी धुएं के कारण विशेषतः धूम्रपान से होती है और अभी तक इन बीमारियों का स्थाई इलाज मेडिकल सांइस के पास नहीं है। हालांकि इन बीमारियों में श्वासप्रेक्षा का . उपयोग विस्तृत अध्ययन के बाद ही बताया जा सकता है लेकिन जिस तरह
से दमा के रोगी प्राणायाम व श्वास प्रेक्षा से लाभान्वित होते हैं ये मरीज भी ठीक हो सकते हैं। पूर्व में हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और अब दमा के बारे में जिन प्रयोग और परिणामों को जाना है इससे यह सिद्ध हो रहा है कि प्रेक्षा के परिणाम लाभकारी हैं। दमा में प्रेक्षा के प्रयोग के परिणाम निम्न सारणी में संकलित हैं।