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प्ररोचना ]
का विज्ञानी केवल चैतन्य के आधार पर उन खोजों को आगे नहीं बढ़ा सकता। अध्यात्म के जो महान आचार्य हुए हैं, उन्होंने अचेतन और जड़ पदार्थ की खोज भी की है। दोनों के बिना हमारा समन्वित व्यवहार नहीं चलता । यदि विज्ञान का व्यवसायीकरण हुआ है तो आज योग का भी व्यवसायीकरण हुआ है। ये दोनों बातें वांछनीय नहीं है। दोनों ही सत्य की खोज के लिए 'हैं, इसलिए दोनों का योग बहुत आवश्यक है । "
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आध्यात्मिक व्यक्ति सत्य की खोज करे अथवा एक वैज्ञानिक सत्य की खोज करे दोनों की प्रक्रिया एक ही है। दोनों को ही स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना पड़ता है। आध्यात्मिक व्यक्ति की खोज का साधन बनता है - अतीन्द्रिय ज्ञान और वैज्ञानिक की खोज के साधन बनते हैं - सूक्ष्मवीक्षण और दूरवीक्षण यंत्र । अतीन्द्रिय ज्ञानियों ने परमाणु की खोज की। आज परमाणु वैज्ञानिक भी चेतना की ओर आ रहे हैं। इस तथ्य पुष्ट करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ लिखते हैं "वैज्ञानिक आइंस्टीन से अंतिम समय में पूछा गया 'अगले जन्म में आप क्या करना चाहेंगे ? उन्होंने उत्तर दिया - 'इस जन्म में मैंने ज्ञेय को खोजा, मेरा सारा विषय वस्तुनिष्ठ (Object) रहा। अब मैं चाहता हूँ कि अगले जन्म में मैं ज्ञाता को जानने का प्रयत्न करूँ । आत्मा को जानूँ, चैतन्य को जानूँ, चैतन्य के रहस्यों को जानूँ- यह मेरी अगले जन्म की इच्छा है ।"
प्रेक्षा
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आचार्य महाप्रज्ञ प्रेक्षा ध्यान के प्रवर्तक हैं। वे अनुभव करते हैं कि वैज्ञानिक चिन्तन और आविष्कार के बाद विकास की अवधारणा इतनी जटिल हो गई है कि पीछे लौटना भी संभव नहीं और पीछे लौटे बिना सभ्यता पर छाए हुए संकट के बादलों का बिखरना भी संभव नहीं । अतः तकनीकी विकास पर विवेकपूर्ण अंकुश लगाना जरूरी है। क्या यह तकनीकी विकास उपादेय है, जो मानव की अस्मिता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है ? हमें मुड कर देखना होगा कि सीमातीत तकनीकी विकास के बाद मनुष्य ने क्या खोया और क्या पाया ? मानसिक शांति, तनाव मुक्त मनः स्थिति एवं स्वास्थ्य पर उसका क्या प्रभाव पड़ रहा है?
आचार्य महाप्रज्ञ ने इस समस्या के निराकरण हेतु दर्शन और योग को प्रायोगिक रूप दिया है, जो प्रेक्षा ध्यान और जीवन विज्ञान के रूप में विख्यात हुआ है। प्रेक्षा ध्यान के रहस्य को प्रकट करते हुए वे कहते हैं कि प्रेक्षाध्य