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[ जैन विद्या और विज्ञान
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बहुत 'सारे प्रयोगों में साइकोलॉजी, फिजियोलॉजी, सोशियोलॉजी, इकोलॉजी आदि का सहारा लिया गया है। इन्हीं के आधार पर प्रेक्षाध्यान के सारे प्रयोग चले हैं और चल रहे हैं। इनसे बड़ी मदद मिली है। प्रेक्षाध्यान में पहले शरीर के रहस्यों को समझा जाता है। शरीर के रहस्यों को समझने में शरीर - शास्त्र तथा मन को समझने के लिए मनोविज्ञान आवश्यक है। प्रेक्षाध्यान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उपयोग कर, शरीर, मन और बाद में चेतना के स्तर पर पहुँचने का प्रावधान किया है ।
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आचार्य महाप्रज्ञ का मानना है कि विज्ञान एवं तकनीकी विकास ने हमें एक सुलभता प्रदान की है जो दर्शन एवं अध्यात्म साधना के द्वारा प्रदत्त वृत्तिपरिष्कार की पद्धतियों का वस्तुनिष्ठ अंकन कर उनकी उपादेयता को और अधिक आधारभूत बना सकती है । उदाहरणार्थ - अमुक-अमुक ध्यान प्रणाली द्वारा चित्त की चंचलता या शरीर का तनाव या भावों का परिष्कार घटित. होता है या नहीं। इसे वस्तुनिष्ठ रूप में अंकित करनें वाले उपलब्ध वैज्ञानिक उपकरणो के माध्यम से पूर्ण वैज्ञानिक विधि सम्मत परीक्षणों द्वारा मानव जाति की अनेक समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है। यदि ऐसे प्रयोग. एवं परीक्षण शिक्षा क्षेत्र में उपलब्ध करवाए जाएं तो असीम भोग-वृति से उत्पन्न हिंसा, विषमता, वंचना आदि को न्यून करने की दिशा में एक निर्णायक प्रतिकार की क्रियान्विति की जा सकती है।
मेरी भावना
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उपर्युक्त संदर्भों से यह ज्ञात होता है कि जैन दर्शन और विज्ञान तथा मनोविज्ञान पर आचार्य महाप्रज्ञ का लेखन अधिकारपूर्ण हुआ है तथा यह साहित्य इतने परिमाण में है कि पाठकों के अध्ययन के लिए एक पुस्तक का आकार सकता है। मेरी भावना बनी कि एक कार्य-योजना द्वारा उपर्युक्त साहित्य का संकलन, विश्लेषण कर विस्तार दूँ। जिससे मैं अपने धर्मगुरु के प्रति श्रद्धासिक्त भावाभिव्यक्ति कर सकूं। यद्यपि मेरा विषय रसायन विज्ञान का रहा परन्तु जैन दर्शन के अध्ययन की रुचि आरम्भ से रही तथा जिसे मैंने गुरु आशीर्वाद और श्रद्धा से सींचा। बादलों को जब अनुकूल हवाओं का वेग मिल जाता है, तो वे बरसते हैं। यही मेरे साथ हुआ । समणी मंगलप्रज्ञाजी जो कि 'महादेवलाल सरावगी अनेकान्त शोधपीठ' की निर्देशिका हैं, उन्होंने कहा कि मुझे जैन विद्या और विज्ञान पर मौलिक एवं नवीन लेखन करना चाहिए। उनकी प्रेरणा और मेरे मन की भावना को मानो मणि-कांचन का योग मिल गया हो। उन्हीं दिनों मैं जैन विश्व भारती संस्थान