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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ]
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होता है लेकिन बहुत से व्यक्तियों में श्रम करने पर जो दर्द होता है जिसे एन्जाइना (Angina) कहते हैं, वह भी इस बीमारी का पूर्व रूप है।
धमनियों में वसा जमा होने के कई कारण हैं, जिनमें निम्न प्रमुख हैं अनुवंशिकता,
(i) डाईबिटीज, (ii) उच्चरक्तचाप (iii) धूम्रपान .
वर्तमान में जीवन शैली परिवर्तन व ध्यान के द्वारा इस बीमारी को रोकने के अनेक प्रयोग किए गए हैं। ध्यान के अतिरिक्त भोजन में वसा या घी-तैल के उपयोग की कमी भी इस बीमारी को रोकने में सहायक सिद्ध होती है। आचार्य महाप्रज्ञ ने प्राणायाम व कायोत्सर्ग, विभिन्न प्रकार के प्रेक्षा प्रयोग तथा 'लं' के ध्यान को हृदय रोग को रोकने में सहायक बताएं हैं। भारत में इस पर कुछ स्थानों पर प्रयोग हो रहे हैं। दो स्थानों के प्रयोगो सम्बन्धित चर्चा हम निम्न प्रकार से करेंगे। ..(i) दिल्ली के आयुर्विज्ञान चिकित्सालय (एम्स) में डॉ. मनचन्दा हृदय
रोग निवारण के क्षेत्र में प्रमुख रूप से कार्य कर रहे हैं। पहले हृदयाघात को रोकने में तथा एक बार जिन्हें यह रोग हो गया है उनमें पुनः इस बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए। उन्होंने पाया कि जो लोग नियमित रूप से प्राणायाम व कायोत्सर्ग दोनों का प्रयोग करते हैं उनमें धीरे-धीरे एन्जाइना (Angina) के लक्षण कम हो जाते हैं। प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकलता है कि इसमें सभी व्यक्ति ठीक नहीं हो पाए लेकिन करीब 30-40 प्रतिशत मरीजों को आराम मिला। इन मरीजों की एजियोग्राफिक नतीजे भी आश्चर्यजनक रूप से उत्साहवर्धक रहे हैं और यह पाया गया
कि अधिकांश लोगों में जो धमनी में रुकावट थी वह बढ़ी नहीं .. और करीब 15-20 प्रतिशत लोगों में यह रुकावट कम हो गई
या खुल गई। (ii) डॉ. अरविन्द जैन ने जोधपुर में अपने अध्ययन में करीब 25 हृदय
रोग के मरीजों का अध्ययन किया। हृदय रोग के ये मरीज 6 माह तक प्राणायाम व कायोत्सर्ग की क्रियाएं करते रहे। इनमें