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[जैन विद्या और विज्ञान .
प्रायः सिम्पेथेटिक व पेरासिम्पेथेटिक तंत्र एक दूसरे के विरोधाभासी होते हैं और यह विरोधाभास मस्तिष्क की जटिल प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है। ये दोनों तंत्र आपस में मिलकर क्रिया करते हैं। यह क्रियाएं विभिन्न रसायन तत्त्वों के स्रावण से होती हैं। पेरासिम्पेथेटिक तंत्र एसीटाइल कोलीन का स्रावण करता है तथा सिम्पेथेटिक तंत्र नारएड्रीनेलीन, एड्रीनेलीन तथा डोपामीन का स्रावण करता हैं तथा ये सभी न्यूरोट्रांसमीटर के रूप में कार्य करते हैं।
कार्य प्रणाली - ये न्यूरोट्रांसमीटर शरीर के विभिन्न अंगों में स्थित रिसेप्टर पर स्थित प्रोटीन पर क्रिया करते हैं तथा उससे बीच में कई ट्रांसमीटर निकलते हैं तथा अंत में ए.एम.पी. के द्वारा क्रिया सम्पन्न होती है।
प्रभाव - सिम्पेथेटिक तंत्र शरीर के कई अंगों पर कार्य करता है। (1) अन्तः स्रावी ग्रन्थियां - इसके कारण निम्न हारमोन्स का स्राव बढ़ता
है
(i) रेनिन जो शरीर में रक्त चाप को बढ़ाता है। (ii) इन्सुलिन का स्रावण कम होता है तथा शरीर में शक्कर की मात्रा
- बढ़ती है। (iii) इसके अतिरिक्त - पेराथारमोन, थाइरोक्सिन का स्रावण भी
___ बढ़ाता है। गेस्ट्रिन आदि का स्रावण कम होता है।
हृदय - सिम्पेथेटिक तंत्र हृदय की गति बढ़ाता है, हृदय की कार्यक्षमता बढ़त्ता है तथा धमनियों को संकुचित कर रक्त चाप बढ़ाता है। पेरासिम्पेथेटिक तंत्र
इस नाड़ी तंत्र के तंतु केन्द्रीय नाड़ियों से (तृतीय, सप्तम, नवम व दशम) से तथा नीचे कमर में दूसरे तथा तीसरे सेक्रल नाड़ियों से निकलते हैं। यहां से निकल कर ये नाड़ियां शरीर के सभी हिस्सों में जाती हैं विशेषतः आंसू ग्रन्थि, लार ग्रन्थि, हृदय, डायफ्राम आमाशय, प्रजनन अंग तथा मूत्राशय में जाती है।
कार्यप्रणाली - एसीटाइल कोलीन शरीर में स्थित रिसेप्टर पर दो तरह से कार्य करता है -
निकोटिनिक तथा मस्क्रीनिक। निकोटिनिक रिसेप्टर एड्रीनलसं पर कार्य करता है तथा दूसरे रिसेप्टर शरीर के दूसरे अंगों पर कार्य करते हैं।