SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 286] [जैन विद्या और विज्ञान याददाश्त को बनाए रखता है। अतः जो बातें याददाश्त का हिस्सा बन गई है वे बनी रहती हैं। लिंबिक तंत्र के रोगग्रस्त होने पर वर्तमान याददाश्त चली जाती है लेकिन पुरानी बातें याद रहती हैं। मेरु रज्जु - केन्द्रिय नाड़ी तन्त्र का यह दूसरा मुख्य अंग है। मेरु दंड इसके भीतरी भाग में स्थित मेरु रज्जु मस्तिष्क के आखिरी हिस्से मेडुला का निरंतर क्रम कहा जा सकता है। मेरु रज्जु प्रायः आयताकार होती है तथा कमर के नीचे के हिस्से में समाप्त होती है। इससे कई नाड़ियां निकलती हैं जो शरीर के अंगों की स्वैच्छिक गतिविधियों को नियंत्रित करती है। इसके अतिरिक्त प्रतिबिम्बित गतिविधियां भी मेरु रज्जु के कारण ही होती हैं। मेरु रज्जु का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान यह है कि इसकी लम्बाई में ज्ञानवाही और क्रियावाही दो प्रकार की नाड़ियां होती है। दोनों मिलकर सूचनाओं का आदान-प्रदान का कार्य करती है। ज्ञानवाही नाड़िएं इन्द्रियों द्वारा संग्रहित संदेशों को मस्तिष्क तक पहुंचाती है। और क्रियावाही मस्तिष्क से प्राप्त संचालन सम्बन्धी सन्देशों को धड़ एवं पैर की मांसपेशियों तक पहुंचाती है। परिधिगत (Peripheral) नाड़ी तंत्र विभिन्न अंगों को मस्तिष्क से जोड़ने वाले नाड़ी तंत्र को परिधिगत (Peripheral) नाड़ी तंत्र कहा जाता है। इसके मुख्य भाग हैं - 1. क्रेनियन नाड़ियां 2. स्पाइनल नाड़ियां 3. गेन्गलियान 12 जोड़ी क्रेनियल नाड़ियां तथा 31 जोड़ी स्पाइनल नाड़ियां मिलकर यह नाड़ी तंत्र बनाती हैं। स्पाइनल नाड़ियां मेरु रज्जु से दो मूल से जुड़ी रहती हैं, अग्र मूल तथा पश्च मूल । अग्र मूल में मांसपेशियों की गति के तंतु होते हैं जबकि पश्च मूल में संवेदन के तंतु होते हैं। दर्द, कम्पन, छुअन, गर्म, ठंडा ये सभी अहसास पश्च मूल से होते हुए मस्तिष्क तक पहुंचते हैं। इसके अतिरिक्त क्रेनियल नाड़ियां भी इसी तरह मध्य मस्तिष्क और पश्च मस्तिष्क से जुड़ी रहती हैं और चेहरे, जीभ तथा निगलने का यंत्र वगैरह को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। स्पाइनल नाड़ियां गर्दन तथा कमर में गुच्छे के रूप में निकलती हैं तथा हाथ व पैर में फिर अलग-अलग होकर पहुंचती है। हाथ में जाने वाली
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy