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________________ प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ] [285 पटल सक्रिय रहता है। अनुशासन, सहिष्णुता, समरसता, संयम, उदारता आदि "में दायां पटल सक्रिय रहता हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने मेडिकल साइन्स के इन निष्कर्षों का प्रेक्षा पद्धति में उपयोग किया है । वह, प्रत्येक पटल पर आवश्यकतानुसार ध्यान करवाते हैं। अध्यातम के विकास में दायां पटल पर किया गया ध्यान उपयोगी सिद्ध हुआ है । • मध्य मस्तिष्क में एक ही भाग होता है। यह अग्र मस्तिष्क के साथ आपस में कारपस केलोसम से जुड़े रहते हैं । अग्र मस्तिष्क और मध्यम मस्तिष्क मिलकर वृहद् मस्तिष्क बनाते हैं। वृहद् मस्तिष्क के गोलाद्धों के तल पर थेलेमस और हाईपो थेलेमस है। आचार्य महाप्रज्ञ ने हाईपो थेलेमस को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना है। हमारे शारीरिक, मानसिक एवं भावानात्मक स्थितियों में यह महत्त्वपूर्ण कड़ी है। पश्च मस्तिष्क में 3 भाग होते हैं दो सेरीब्रम, मेडुला तथा पोन्स । अभी हम इनकी विस्तार में चर्चा नहीं करेंगे। — मस्तिष्क ही शरीर का वह हिस्सा है जहां से शरीर तथा मन की सभी गतिविधियां नियंत्रित होती हैं। यदि मस्तिष्क कार्य करना बंद कर दें तो फिर चाहे श्वसन और हृदय चलता रहे, शरीर शास्त्री उस व्यक्ति को मृत मान लेते हैं। हमारी सारी गतिविधियां, अनुभव करने की क्षमता, मांसपेशियों की गतिविधियां वगैरह सभी मस्तिष्क से नियंत्रित होती है। यहां तक कि ऑटोनोमिक नाड़ी तंत्र को भी मस्तिष्क कुछ हद तक नियंत्रित करता है। लिम्बिक तंत्र याददाश्त व अन्य अवचेतन ( Subconscious) क्रियाएं इस तंत्र के द्वारा नियंत्रित होती है । यह तंत्र हिप्पोकेम्पस, एमीग्डेला तथा एन्टोराइनस जिसे पेरा लिम्बिक तंत्र कहते हैं तथा थेलेमस, स्ट्राइटम तथा हाइपोथेलेमस के कुछ हिस्सों से मिलकर बनता है। ये सभी मस्तिष्क के छोर पर स्थित होते हैं और इसलिए इसे लिंबिक तंत्र कहते हैं। हिप्पोकेम्पस तथा एमीगडेला इस तंत्र के प्रमुख अंग होते हैं और मस्तिष्क से विभिन्न न्यूरोनस् से जुड़े होते हैं। - कार्य - मस्तिष्क के कार्य के अन्तर्गत स्पर्श, स्वाद, गंध, दृष्य, ध्वनि की इन्द्रिय संवेदना होती है। यह तंत्र ऑटोनोमिक नाड़ी तंत्र तथा हाइपोथेलेमस के द्वारा अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव को यह नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त यह इमोशन तथा विशेषतः गुस्सा डर और सेक्स से संबंधित इमोशन को नियंत्रित करता है। इसके अतिरिक्त यह तंत्र लंबे समय की
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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