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________________ 284] [ जैन विद्या और विज्ञान (iii) नाड़ी तंत्र नाड़ी तन्त्र, यह शरीर का महत्त्वपूर्ण तन्त्र है। शरीर के अन्य तन्त्रों के नियंत्रण और संयोजन में इसकी प्रमुख भूमिका रहती है। शरीर शास्त्र के आधार से नाड़ी तंत्र को तीन भागों में बांटा गया है। (1) केन्द्रिय (Central Nervous System) नाड़ी तंत्र (2) परिधिगत (Pheripheral) नाड़ी तंत्र (3) स्वतन्त्र स्नायविक (Autonomic) नाड़ी तंत्र केन्द्रिय नाड़ी तंत्र केन्द्रिय नाड़ी तंत्र दो भागों में बना होता है - 1. मस्तिष्क 2. मेरु रज्जु यह नाड़ी तंत्र. वह प्रमुख जगह है जहां सभी नाड़ी तंत्रों की सूचनाएं इकट्ठी होती हैं और उनका एकीकरण और आपसी संबंध स्थापित होता है। __ मस्तिष्क और मेरु रज्जु एक झिल्ली जिसे.कपालरन्ध्र (मन्निजिस) कहते हैं, से ढकी रहती है तथा इनके मध्य में और चारों तरफ एक द्रव पदार्थ रहता है जिसे सी.एस.एफ. कहते हैं। यह केन्द्रीय तंत्र करोड़ो-अरबों न्यूरॉन से बना होता है। इस तंत्र का बाहरी हिस्सा कारटेक्स कहलाता है जो भूरा पदार्थ और सफेद पदार्थ में विभक्त होता है। . मस्तिष्क - सजकता से की जाने वाली सभी क्रियाएं मस्तिष्क के द्वारा होती है। यह खोपड़ी के अंदर स्थित होता है। मस्तिष्क को तीन भागों में बांटा जा सकता है - __ 1. अग्र मस्तिष्क 2. मध्य मस्तिष्क 3. पश्च मस्तिष्क। अग्र मस्तिष्क जिसको सेरिब्रम भी कहते हैं, यह व्यक्तित्व, आचरण एवं संचलन का निर्वाहक है। इसका निम्नतम बायां भाग हमारी वाणी का नियंत्रक केन्द्र है। यह दो हिस्सों में बंटा होता है, दायां और बायां। प्रत्येक हिस्सा शरीर के दूसरी और से समस्त एच्छिक क्रियाकलापों का नियंत्रण करता है। प्रयोगो से यह सिद्ध किया गया है कि तर्क, गणित, भाषा के सम्बन्ध में बांया
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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