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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ]
सारी क्रियाओं का संचालन करता है । स्थूल शरीर में शक्ति का सबसे बड़ा भंडार है तैजस शरीर । जिसका तैजस शरीर मंद है, अग्नि मंद है, उसकी सारी क्रियाएं मंद हो जाती है। अग्नि तीव्र है तो सारी क्रियाएं तीव्र हो जाती है। आज के विज्ञान ने इस तथ्य को भली-भांति पकड़ लिया है ।
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सूर्य के ताप का प्रभाव
डॉ. स्टीवाक ने यह प्रतिपादन किया था कि सूर्य का प्रकाश हमारे भोजन की पूर्ति करता है। सूर्य का ताप हमारे खाद्य का पूरक है। यदि सूर्य का ताप न मिले तो हम केवल खाद्य पर जीवित नहीं रह सकतें।
वैज्ञानिक प्रयोग
माइकेल और उसके कुछ सहयोगियों ने चूहों पर प्रयोग किए। उन्होंने अठारह चूहों को खाद्य पदार्थ खिलाए जिनमें कैल्शियम, फॉस्फोरस आदि नहीं थे। खाद्य में पूरे तत्त्व न होने के कारण चूहे बीमार हो गए। उनको अंधेरे कमरे में रखा गया । बीमार ही रहे। फिर उन्हें सूर्य की धूप में रखा। एकदो दिन में स्वस्थ हो गए। भोजन वही कमी वाला चलता रहा। दूसरे चूहों को कम तत्त्वों वाला भोजन दिया गया। वे बीमार हो गए। इस बार उन्हे धूप में नही छोड़ा गया। उन्हें बन्द कमरे में ही बया गया । किन्तु उन्हें जो भोजन दिया जा रहा था उसे बहुत समय तक सूर्य की धूप में रखा जाता था। दो चार दिनों में वे चूहे स्वस्थ हो गए। तब डॉक्टर इस निष्कर्ष पर 1. पहुंचे कि सूर्य का ताप भोजन को केवल पचाता ही नहीं हैं, वह स्वयं खाद्य है और भोजन का पूरक है। सूर्य के प्रकाश के बिना वनस्पति का विकास नहीं होता। मनुष्य के शरीर का भी विकास नहीं होता और भोजन का भी पाचन नहीं हो सकता।
आतापना
इन वैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर एक विचार मन में आया। जैन परंपरा में मुनियों के आतापना लेने की बात सर्वसामान्य हैं। अनेक मुनि आतापना लेते थे । वे सूर्य का ताप घंटो तक लेते। वे दो-दो, तीन-तीन दिन तक नहीं खाते। उनकी भूख कम हो जाती । भोजन की पूर्ति सूर्य के आतप से हो जाती। वे इस रहस्य को जानते थे, इसलिए इस क्रिया में संलग्न हो • जाते थे। साधना का मतलब है कि हम स्थूल शरीर की शक्तियों को जागृत