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________________ 270 ] [ जैन विद्या और विज्ञान करें, और साथ ही साथ सूक्ष्म शरीर की शक्तियों को भी सक्रिय करें। स्थूल शरीर से लाभ उठाएं। इस दृष्टि से आचार्य महाप्रज्ञ ने जैन दर्शन में वर्णित तैजस और कार्मण शरीर को अनन्त शक्ति का स्रोत कहा है। आयु और शरीर शक्ति आचार्य महाप्रज्ञ आत्मा को जानने और देखने के प्रयत्न को जितना महत्त्वपूर्ण मानते हैं, शरीर को जानने के प्रयत्न को कम महत्त्वपूर्ण नहीं मानते। वे कहते हैं कि डा. कार्लसन का कथन है कि यद्यपि गणित से मानव की आयु एक सौ पचास वर्ष आती है फिर भी चिकित्सा विशेषज्ञों को मोटे तौर पर सौ वर्ष की आयु तो स्वीकार कर ही लेनी चाहिए। मानव जीवन के इस काल में उसकी विभिन्न शक्तियां भी एक क्रम से क्षीण होती है। सबसे पहले लक्षण आंख पर प्रकट होता है। आंख के लेंस के लचीलेपन की कमी दसवें वर्ष में ही प्रारम्भ हो जाती है, साठ वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते वह समाप्त हो जाती है। आंख की शक्ति के दूसरे लक्षण हैं - दृष्टि के प्रसार में कमी, किसी चीज का साफ-साफ नजर न आना तथा हल्के प्रकाश में दिखलाई न पड़ना। ये लक्षण चालीस वर्ष की उम्र में प्रारम्भ होते है। इसी प्रकार मानव की दूसरी शक्तियां भी कम होती है। स्वाद की तेजी पचास वर्ष की उम्र से घटने लगती है और घ्राण शक्ति साठ वर्ष की उम्र से। श्रवण शक्ति का क्षय तो बीस वर्ष की उम्र से ही प्रारम्भ हो जाता है। तो बीस वर्ष की उम्र से ही पेट के पाचक रस कम होने लगते है और साठ की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उनका उत्पादन आधा हो जाता है। पचास वर्ष की उम्र में 'पेपसिन' और 'ट्रिपसिन' का उत्पादन बहुत ही घट जाता है। ये चीजें पाचन शक्ति को ठीक करने के लिए आवश्यक है। वस्तुतः इन्हीं की कमी से हाजमें की तकलीफें उम्र के साथ बढ़ती है। अतः आयु और शरीर शक्ति का ध्यान रखते हुए जीवन में कार्य को करना चाहिए। रात्रि भोजन आचार्य महाप्रज्ञ ने जैन संस्कृति में प्रचलित रात्रि भोजन न करने के संबंध में वैज्ञानिक कारण बताते हुए कहते हैं कि हम जो भोजन करते हैं उसका पाचन होता हैं तैजस शरीर के द्वारा। हमारे पाचन की शक्ति है तैजस। उसको अपना काम करने के लिए सूर्य का आतप आवश्यक होता है। जब उसे सूर्य का प्रकाश नहीं मिलता तब वह निष्क्रिय हो जाता है। पाचन कमजोर हो जाता है। यह कारण वैज्ञानिक है।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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