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[ जैन विद्या और विज्ञान
शरीर के शक्ति केन्द्र
(i) सामान्य विवरण शरीर अनंत शक्ति का स्रोत
आचार्य महाप्रज्ञ अध्यात्म क्षेत्र के पक्षधर हैं। वे आत्मा की अनन्त शक्ति को स्वीकार करते हैं तो शरीर को भी अनन्त शक्ति का स्रोत मानते हैं। उनका मानना है कि शरीर की शक्ति के बिना आत्मा की शक्ति कार्यरत नहीं होती और आत्मा की शक्ति के बिना शरीर का यह यंत्र संचालित नहीं होता। हमारी चेतना का प्रकाश इस शरीर में प्रकट होता है। शरीर के बिना वह प्रकट नही हो सकता इसलिए शरीर भी आत्मा बन जाता है। शरीर और आत्मा के संबंधो को समझाते हुए कहते है कि शरीर की शक्ति और आत्मा की शक्ति दोनो का प्रगाढ़ संबंध है। स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर की भिन्नता
स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर की भिन्नता को दर्शाते हुए कहते हैं कि जो दिखता है, वह शरीर नहीं हैं। वह तो स्थूल शरीर है। यह. शक्तिशाली है पर दूसरे शरीरों की तुलना में कम शक्तिशाली है। शरीर दो है - सूक्ष्म शरीर और सूक्ष्मतर शरीर। नास्तिकों ने इस स्थूल शरीर में आत्मा को खोजने का प्रयत्न किया है। आत्मा नहीं मिली। आज के वैज्ञानिक भी इस स्थूल शरीर को मुख्य मानकर आत्मा की खोज में लगे हैं। मरने से पूर्व शरीर को तोलते है, मरने के बाद पुनः शरीर को तोलते हैं और यह निष्कर्ष निकालना चाहते है कि दोनो शरीर के वजन में कितना अन्तर आया। यदि वजन घटा है तो कोई वस्तु शरीर से निकलकर चली गई है, यही आत्मा है। यदि वजन बराबर होता है तो कोई वस्तु बाहर नही गई। जैसा पहले था, वैसा ही अब है। किन्तु यह बहुत ही स्थूल बात है। तैजस शरीर
आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं कि हम सूक्ष्मतर शरीर को जानें। ये अनंत शक्ति के स्रोत हैं। एक है तैजस शरीर और एक है कार्मण शरीर। तैजस शरीर तापमय शरीर है। वह हमारी ऊष्मा, सक्रियता और शक्ति का संचालक हैं। यह न हो तो ऊष्मा पैदा नहीं हो सकती, पाचन नहीं हो सकता. रक्त का संचालन नहीं हो सकता। यह तैजस शरीर ही हमारे स्थूल शरीर की