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[ जैन विद्या और विज्ञान
प्रस्तुत सूत्र में पुरुष के सहवास के बिना भी गर्भधारण के पांच कारण का उल्लेख है। इन सबमें पुरुष के वीर्य पुद्गलों का स्त्री योनि में समाविष्ट होने से गर्भधारण होने की बात कही गई है। वीर्य पुद्गलों के बिना गर्भधारण का उल्लेख नहीं है। वर्तमान में कृत्रिम गर्भाधान की प्रणाली से इसकी तुलना हो सकती है। सांड या पाडे के वीर्य पुद्गलों को निकाल कर रासायनिक विधि से सुरक्षित रखा जाता है और आवश्यकतावश गाय या भैंस की योनि से उनके शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है। गर्भाविधि पूर्ण होने पर गाय या भैंस प्रसव कर बच्चों को उत्पन्न करती हैं। वर्तमान विज्ञान द्वारा किए जाने वालें कृत्रिम गर्भाधान के तरीके स्थानांग सूत्र में वर्णित तरीकों से समानता प्रदर्शित करते है। इससे प्रतीत होता है कि गर्भाधान स्त्री और पुरुष के सहवास के अभाव में भी होता है। टेस्ट टयूब बेबीज
आज के विश्व में टेस्ट-ट्यूब' की बात प्रचलित है। पुरुष के वीर्य - पुद्गलों तथा स्त्री के डिम्ब कोशिका का संयोग कराया जाता है जो संयोग किसी रूकावट या अन्य कारणों से प्राकृतिक विधि से नहीं हो पाता। यह संयोग कांच की नली (टेस्ट टयूब) में उचित वातावरण तथा रासायनिक मिश्रण में कराया जाता है। भ्रूण के कुछ बड़ा होने पर भ्रूण को माता के गर्भाशय में स्थापित कर दिया जाता है जहां यथासमय बच्चे की उत्पत्ति होती है। यह प्रक्रिया कहने में बहुत आसान लगती है लेकिन वीर्य एवं डिम्ब संयोग से टेस्ट टयूब में भ्रूण का बनना कई परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अधिकांशतः असफल रहते हैं तथा भ्रूण के बनने के बाद माता के गर्भाशय में भी भ्रूण के स्थापित होने में कई बार असफलता मिलती है, फिर भी कुछ प्रयोगों में सफलता मिली है। भारत में प्रथम टेस्ट टयूब बेबी का जन्म दस वर्ष पूर्व हुआ था। आचार्य महाप्रज्ञ ने टेस्ट टयूब बेबीज के संबंध में जैन आचार्यों द्वारा रचित एक प्राचीन ग्रन्थ की चर्चा की है जो निम्न प्रकार से
योनि प्राभृत
जैन आचार्यों द्वारा रचित एक प्राचीन ग्रन्थ है योनि प्राभृत (जोणि पाहुड)। इस ग्रन्थ में जीव और अजीव, चेतन और अचेतन की जितनी योनियां हो सकती हैं, उनका वर्णन है। आश्चर्य होता है कि आज इतनी वैज्ञानिक गवेषणाओं के बाद भी 'परखनली में शिशु को उत्पन्न करने की प्रक्रिया पूर्णतः