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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ]
यौन शिक्षा
जीवन की मूल प्रेरणा है, शक्ति का विकास ! वैज्ञानिक हयूम ने इन दोनों मनोवैज्ञानिकों फ्रायड और एडलर के कथन का प्रतिवाद किया। उसने कहा सेक्स एनर्जी और शक्ति संचय ये दोनों जीवन की मूल प्रेरणाएं नहीं है। जीवन की मूल प्रेरणा है व्यक्तित्व का विकास! आचार्य महाप्रज्ञ ने व्यक्तित्व विकास के सूत्रों में यह आवश्यक माना है कि ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय दोनों पर संयम होना आवश्यक है। हम कर्मेन्द्रिय पर संयम तभी कर सकते हैं जब ज्ञानेन्द्रिय पर हमारा संयम सध जाता है। आज के वैज्ञानिकों ने और प्राचीन तन्त्राचार्यों ने इस विषय पर बहुत ऊहापोह प्रस्तुत किया है और महत्त्वपूर्ण रहस्य उद्घाटित किए है। स्वास्थ्य को केन्द्र में रख कर जीवन जीने के लिए आहार संयम और काम-संयम की शिक्षा आवश्यक है। इसके लिए दिशा परिवर्तन की आवश्यकता है। परिवर्तन के लिए सिद्धान्त और प्रयोग दोनों का समन्वय महत्त्वपूर्ण है। आचार्य महाप्रज्ञ की दृष्टि में यौन शिक्षा देना हानिकारक नहीं लगता, बचाव की बात अधिक हो सकती है। यौन शिक्षा में साथ-साथ, यौन संयम की बात जोड़ दी जाय, तो हानियां कम होगी, बचाव अधिक होगा । कृत्रिम गर्भाधान
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आचार्य महाप्रज्ञ ने कृत्रिम गर्भाधान के बारे में बताया है कि स्थानांग सूत्र में उल्लेख है कि स्त्री, पुरुष से सहवास न करती हुई भी गर्भ को धारण करती है । वे पांच निम्न कारण है
1. अनावृत तथा दुर्निषण्ण- पुरुष वीर्य से संसृष्ट स्थान को गूह्य प्रदेश से आक्रांत कर बैठी हुई स्त्री के योनि देश में शुक्र पुद्गलों का आकर्षण होने पर ।
2. शुक्र पुद्गलों से संसृष्ट वस्त्र के योनि देश में अनुप्रविष्ट हो जाने
पर ।
3. पुत्रार्थिनी होकर स्वयं अपने ही हाथों से शुक्र पुद्गलों को योनि देश में अनुप्रविष्ट कर देने पर ।
4. दूसरे के द्वारा शुक्र पुद्गलों के योनि देश में अनुप्रविष्ट किए जाने पर ।
5. नदी तालाब आदि से स्नान करती हुई के योनि देश में शुक्र पुद्गलों के अनुप्रविष्ट हो जाने से ।