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________________ 264] [ जैन विद्या और विज्ञान काल-निमित्त हमारी वृत्तियां निमित्तों के साथ व्यक्त होती है। क्षेत्र, काल, परिस्थितियां और वृत्तियां निमित्त बनती है। हम सूक्ष्मता से देखें एक वृत्ति प्रातः काल नहीं जागती, किन्तु वह सांयकाल जागती है। प्रत्येक वृत्ति के जागरण का अपनाअपना समय होता है। इसी आधार पर जैविक घड़ी के सिद्धान्त को प्रतिपादित किया गया - कौनसा कार्य कब करना चाहिए? यह काल का निमित्त है। आंतरिक शोधन का भी एक समय है। मेलाटॉनिन के स्राव का समय मन की चंचलता को कम करने का सबसे उचित समय है। जिस समय पीनियल ग्लैण्ड काम करे, वह समय आंतरिक परिष्कार के लिए सबसे उत्तम समय हैं। मेलाटॉनिन बाहरी क्रियाओं को निष्क्रिय कर आंतरिक क्रियाओं को उद्दीप्त करता है। विचार, मन, भाव और वृत्तियां ये ही तो हिंसा को बढ़ावा दे रही है। आचार्य महाप्रज्ञ का उपर्युक्त निष्कर्ष सही प्रतीत होता है। क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानव शरीर भी एक जैविक घड़ी (Biological Clock) की तरह . : चलता है (Circadian Cycle)। शरीर का तापमान सुबह 4-5 बजे से न्यूनतम तथा शाम 6 बजे अधिकतम तापमान रहता हैं। इसी प्रकार मेलाटॉनिन जो कि भावना के आवेग को, मन की चंचलता को बढ़ाता है, यदि सबसे कम स्राव के वक्त ध्यान किया जाय तो एकाग्रता सही रहेगी। , काम-शक्ति काम-शक्ति के संबंध में वैज्ञानिक फ्रायड कहता है कि मनुष्य के जीवन में कामशक्ति आदि से अन्त तक रहती हैं। आदमी जीवन पर्यन्त कामैषणा में रत रहता हैं और येनकेन प्रकारेण काम सुख पाना चाहता है। इसलिए फ्रायड का यह दृढ़ कथन है कि काम-वासना का दमन नहीं होना चाहिए। फ्रायड के अनुसार काम-शक्ति और सृजनात्मक शक्ति दो नही है। आचार्य महाप्रज्ञ का कथन है कि फ्रायड के इस सिद्धान्त ने कुछ सचाई प्रकट की है तो कुछ भ्रान्तियां भी पैदा की है। इससे कामुकता और यौनाचार बढ़ा है। 'एडस' का रोग उसी का एक परिणाम है। इसका कारण है समलैंगिक व्यभिचार, अप्राकृतिक मैथुन। जब आदमी इच्छाओं का दास बन जाता हैं तो अमूल्य जीवन को नीरस बना देता है। इसलिए काम-शिक्षा आवश्यक है। मनोवैज्ञानिक एडलर ने फ्रायड से विपरीत बात कही कि जो सेक्स प्लेजर आदमी में जीवन भर रहता है, वह मूल प्रेरणा नहीं हैं। ..
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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