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________________ प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ] [263 में सेराटोनिन रसायन रहता हैं जो हमारी चेतना को मूर्च्छित करता हैं। जैन दर्शन की भाषा में यह मूर्च्छा दर्शन मोहनीय कर्म हैं। इस मूर्च्छा का विघटन दर्शन मोहनीय चेतना के केन्द्रों पर ध्यान करने से होता है। इसके बाद दृष्टि बदल जाती है। हम समझते हैं कि कामवासना और स्नेह भाव-बंधन हैं, किन्तु दोनो से बड़ा बंधन है दृष्टि के प्रति राग । शरीर शास्त्रीय दृष्टिकोण शरीर शास्त्रीय भाषा में यह कहा जाता हैं कि सेरोटॉनिन रसायन प्रमुख कारण हैं, जो अन्य रसायन विशेषतः डोपामीन तथा नोर ऐड्रेनेलिन के साथ मस्तिष्क में भावनात्मक क्रियाएं, अर्थात् मानसिक स्थिति को नियंत्रित करता हैं। जितनी भी दवाइयां उदासी, अधीरता, उत्तेजना वगैरह को ठीक करने के लिए प्रयुक्त होती है, उनमें से अधिकतर दवाइयां एस. आर. आई. (Serotonin Reuptake Inhibitors) हैं और यह देखा गया हैं कि सेरोटॉनिन का नियंत्रण कई तरह के मानसिक विकारो को ठीक करता हैं। विशेषतः डिप्रेशन को । अतः निश्चित ही इसके नियमन से राग द्वेष के भावो में कमी आ सकती हैं। देखा गया है कि इन दवाओं के लम्बे समय के उपयोग के • बाद व्यक्ति कई बातों के प्रति उदासीन होने लगते हैं। संभवतः राग / द्वेष की कमी / उद्वेग भी कम हो जाते हैं । शरीर विज्ञान और काम वासना शरीर शास्त्र की दृष्टि से काम वासना की व्याख्या करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं कि हमारा जो पीनियल ग्लेण्ड है उससे दो प्रकार के स्राव . होते हैं - सेराटॉनिन और मेलाटॉनिन । ये दो हारमोन्स बहुत महत्त्वपूर्ण है । जो मेलाटोनिन है वह काम पर नियन्त्रण करने वाला है। काम वासना को जगाने वाले हारमोन्स बाहर से आते हैं, पीनियल से आते हैं और उन पर नियन्त्रण करने वाला हैं मेलाटोनिन । वह तीन या चार बजे तक वृत्ति पर नियंत्रण रखने का काम करता हैं। चार बजे के बाद प्राण के प्रवाह को भरने लगता हैं। हम बाहर से आकाश मण्डल से बहुत प्राण लेते हैं। जब तक मेलाटोनिन अपना काम नहीं करता, प्राण को हम अपने भीतर ले नही सकते । चार बजे का समय है कि इस समय प्राण का प्रवाह मेलाटॉनिन के द्वारा पूरे शरीर में भरता है। आकाश मण्डल से आने वाले विकिरणों के अनुदान का यही समय होता हैं । अतः इस समय जो व्यक्ति उठता है, वह प्राण से भरा हुआ अनुभव करता हैं । I ―
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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