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________________ 262] [ जैन विद्या और विज्ञान के स्राव का गोनाड्स पर स्रावित होना। जैन दर्शन के अनुसार इसका सूक्ष्म कारण हैं मोहनीय कर्म का उदय और उसमें भी सूक्ष्म कारण है भाव संस्थान की सक्रियता। शरीर शास्त्र और जैन दर्शन की मान्यता को एकीभूत करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ मानते हैं कि जहाँ पीनियल और पिट्यूटरी ग्रन्थि है, वही आज्ञाचक्र है जिसे तृतीय नेत्र भी कहा जाता हैं। इस स्थान पर ध्यान करने से पिट्यूटरी और पीनियल ग्रन्थि के स्राव बदल जाते हैं और गोनाड्स पर नहीं जा पाते। तब काम वासना अपने आप समाप्त हो जाती है। शरीर शास्त्रीय मीमांसा - उपर्युक्त कथन की शरीर शास्त्रीय मीमांसा यह है कि ध्यान से पिट्यूटरी, पीनियल ग्रन्थि के स्राव बदल जाते हैं, कुछ सीमा तक सही हैं। वास्तव में पिट्यूटरी के सारे स्राव हाइपोथेलेमस से नियन्त्रित होते हैं और हाइपोथेलेमस का संबंध सीधा मस्तिष्क में पहुँचने वाले संकेत पर निर्भर करता हैं। अतः व्यक्ति ध्यान या अन्य साधनों से विचारों को नियंत्रित कर सकता हैं तो कामवासना के लिए होने वाले स्राव नियंत्रित हो सकते हैं। डर, क्षोभ आदि की स्थिति में यह देखा गया है कि कामवासना की भावना जाग्रत नहीं होती। इसका कारण हैं कि मस्तिष्क में अन्य विचारों के चलते हाइपोथेलेमस को संदेश नहीं पहुंच पाते अतः पिट्यूटरी से स्राव नहीं हो पाते। लेकिन यह एक अस्थाई प्रक्रिया हैं। ध्यान से स्थाई रूप से इन स्रावों को रोका जा सकता हैं अथवा नहीं, इसका ज्ञान विस्तृत अध्ययन से ही लग सकता है। लेकिन यह असंभव नहीं लगता क्योकि स्रावों से नाड़ी तन्त्र उत्तेजित होता है और यह क्रिया काम वासना को और तीव्र करती है। चिकित्सा विज्ञान में यह स्थापित हो चुका है कि ध्यान व योग की क्रियाएं नाड़ी तन्त्र का शमन कर सकती हैं, बशर्ते व्यक्ति विचारों को स्थिर करने में सफल हो सके। अतः निश्चित ही यह शमन, काम वासना के वेग को रोक पायेगा। वासना का शमन काम वासना के शमन के लिए शरीर केन्द्रों पर ध्यान करने पर विशेष बल दिया हैं। इससे रागात्मक दृष्टि में भी परिवर्तन होता हैं जो महत्त्वपूर्ण है। आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं कि अनेक बार परिस्थिति और मनःस्थिति का भी निर्णय करने में कठिनाई होती है क्योकि हमारी दृष्टि को सेराटोनिन रसायन प्रभावित करता हैं। जैन दर्शन की भाषा में दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय को इसका कारण माना जाता हैं। प्रसिद्ध मादक एल.एस.डी. (L.S.D.)
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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