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[ जैन विद्या और विज्ञान
विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय
1. हमें ज्ञात है कि विज्ञान में विभिन्न विषयों का वर्गीकरण पदार्थ पक्ष को लेकर हुआ है और अध्यात्म शास्त्रों में विषयों का वर्गीकरण भाव पक्ष को लेकर हुआ है । आचार्य महाप्रज्ञ ने भावपक्ष में अव्यक्त द्रव्य को तथा द्रव्य पक्ष में अव्यक्त भाव पक्ष को उजागर कर संगति बिठाई है। उन्होंने पाया है कि विज्ञान और अध्यात्म दोनों सत्य की खोज की दो धाराएं हैं लेकिन विरोधी नहीं है । इनके बीच कोई लक्ष्मण-रेखा स्वीकार नहीं हो सकती ।
2. विज्ञान जगत में पदार्थ के स्वरूप को स्थूल और सूक्ष्म दो भागों
में बांटा है। वैज्ञानिक हाइजनबर्ग के अनुसार सूक्ष्म पदार्थ के नियम स्थूल पदार्थ के नियमों से भिन्न हैं अतः सूक्ष्म पदार्थ के नियम स्थूल पदार्थ पर लागू नहीं होते। जैन दृष्टि से अष्टस्पर्शी पुद्गल स्थूल हैं और चतुःस्पर्शी पुद्गल सूक्ष्म हैं जो भारहीन भी हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने चतुःस्पर्शी पुद्गलों की तुलना ऊर्जा से कर विज्ञान सम्मत विवेचन किया है। इसके अतिरिक्त अदृश्य, अभौतिक द्रव्यों का विश्लेषण कर विज्ञान के क्षेत्र को व्यापक बनाने की दिशा प्रदान की है।
3. आचार्य महाप्रज्ञ ने विज्ञान के जिन मुख्य सिद्धान्तों का उपयोग किया है, वे निम्न हैं
(1) क्रम-विकास (Evolution)
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(2) आनुवंशिकता (Heredity)
( 3 ) सापेक्षता का सिद्धान्त (Theory of Relativity)
(4) क्वांटम सिद्धान्त (Quantum Theory)
( 5 ) शरीर रचना शास्त्र और मनोविज्ञान (Anatomy and Psychology)
4. जीन्स (Jeans) विज्ञान का अध्ययन अपेक्षाकृत नया है । 'जीन्स' के निर्माण के भेद को अभी समझना है। उनकी दृष्टि में जीन्स सूक्ष्म शरीर हैं और इसमें ऐच्छिक परिवर्तन की संभावना है। आधुनिक प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि जीन्स पर बाहरी वातावरण का - प्रभाव भी होता है। अतः व्यक्तित्व के लिए अकेला जीन्स ही जिम्मेदार नहीं है ।