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________________ 260] [ जैन विद्या और विज्ञान और आवेश पैदा होते हैं, एड्रीनल ग्लैण्ड के द्वारा। काम-वासना पैदा होती है, गोनाड ग्लेण्ड के द्वारा यानि नाभि के आस-पास। यहां हमारी सारी वृत्तियां जन्म लेती हैं और उन पर कन्ट्रोल करने वाला है - मास्टर ग्लैण्ड । पिट्यूटरी का संबंध जुडा है, पीनियल ग्लैण्ड और हाइपोथेलेमस से। सिर का फ्रन्टल लाब सारा नियंत्रण कर रहा है और सारी अभिव्यक्तियां, जो वृत्तियों की हो रही हैं वह इसके आस-पास हो रही हैं। यह नियंत्रण की बात वैज्ञानिक स्तर पर आज का प्रमुख चिन्तक या विद्यार्थी ही समझ सकता है। 8. नए मस्तिष्क का निर्माण . विकास की प्रक्रिया निरन्तर गतिमान है। हर युग में मनुष्य ने कल्पना : की - विकास हो, आदमी अधिक अच्छा बने। वर्तमान दशकों में वैज्ञानिक जगत में भी विकास की प्रक्रिया का चिन्तन चला है। उसी का प्रतीक साहित्य है डाफ्लर का 'थर्ड वेव' एवं काप्लर का 'ताओ फिजिक्स'। ये पुस्तकें इस ओर इंगित करती हैं कि कुछ नया होना चाहिए। किन्तु अभी जो मस्तिष्क काम कर रहा है, उसके रहते हुए नए विश्व और नए समाज के निर्माण की कल्पना नहीं की जा सकती। मनोविज्ञान की भाषा में हमारा मस्तिष्क कण्डीशन्ड माइन्ड है, प्रतिबद्ध मस्तिष्क है। वहाँ कुछ बनी-बनाई मान्यताओं और धारणाओं की प्रतिबद्धता को नहीं तोड़ा जाता, तब तक नए समाज के निर्माण की कल्पना नहीं की जा सकती। एनिमल ब्रेन - आदिम मस्तिष्क मस्तिष्क का एक हिस्सा हैं - एनिमल ब्रेन। यह आज बहुत सक्रिय है। यह पशु-मस्तिष्क है। इसे आदि मस्तिष्क भी कहा जा सकता है। जैन दृष्टि के अनुसार जीवों का मूल स्रोत है, वनस्पति जगत। हर जीव वनस्पति से निकलता है। यह अक्षय कोष है। इसे पारिभाषिक शब्दावली में 'निगोद' कहा जाता है। प्रत्येक प्राणी का, चाहे वह अल्प विकसित हो या पूर्ण, सब का आदि स्रोत है निगोद । प्रत्येक प्राणी में यह वनस्पति का मस्तिष्क विद्यमान है। जैन दर्शन की भाषा में इसे 'ओध संज्ञा' कहा जाता है। हयूमन मनोविज्ञान इसे 'क्लेक्टिव माइन्ड' कहता है। दो प्रकार के माइंड है। एक है पर्सनल माइन्ड और दूसरा है कलेक्टिव माइन्ड। ओध संज्ञा प्राणी मात्र में मिलती है। वनस्पति । से लेकर मनुष्य बन जाने तक यह संज्ञा बनी रहती है। यह पशु मस्तिष्क है। यह आज बहुत सक्रिय है। इसलिए समाज में अपराध, अन्याय, अत्याचार, आदि का बोलबाला है। नए समाज के निर्माण के लिए मस्तिष्क की दूसरी
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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