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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ]
प्रक्रिया है । पश्चिम के लोगों ने एक चिकित्सा प्रणाली का विकास किया हैआटोजेनिक चिकित्सा पद्वति । आटोजेनिक चिकित्सा पद्धति में स्वतः प्रभाव डालने वाली बात होती है। वे कल्पना करते हैं और कल्पना के सहारे वैसा अनुभव करते हैं। यह आटोजेनिक प्रणाली, इसे योग की भाषा में भावात्मक प्रयोग कहा जा सकता है। भावना हमारी चेतना को और वातावरण को बदलती है। यह ठीक भावना का प्रयोग है आटोजेनिक चिकित्सा पद्धति । इस पद्धति के द्वारा रोगी अपने आप अपने को स्वस्थ करता है।
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जानवरों पर प्रयोग
आज का युग वैज्ञानिक युग है। प्रत्येक बात पर शोध और अनुसंधान हो रहा है। अब बदलने की बात असम्भव नहीं रही है। मस्तिष्क के वे केन्द्र खोज लिए गए हैं जिन्हें स्टिमुलेट, उत्तेजित करने से प्राणी के स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है। दो बिल्लियां हैं। एक के सिर पर इलेक्ट्रॉड लगाकर उसके भूख के केन्द्र को शान्त कर दिया गया है। दोनों के सामने भोजन लाया गया। एक बिल्ली तत्काल उसे खाने लग गई और दूसरी बिल्ली शान्त बैठी रही। इसी प्रकार बन्दर पर भी सफल प्रयोग किया गया। आहार, भय, नींद, वासना, उत्तेजना इनके उत्पत्ति केन्द्र विद्युत के झटके देकर शान्त कर . दिए जाते हैं। विज्ञान ने इन केन्द्रों को खोज निकाला है। चूहे और बिल्ली का जन्मजात विरोध है। चूहा बिल्ली से डरता है और बिल्ली चूहे को देखते ही उस पर झपटती हैं। दोनों के सिर पर इलेक्ट्रॉड लगा दिए गए। अब न चूहा बिल्ली से डरता है और न बिल्ली चूहे पर झपटती है। चूहा बिल्ली की गोद में खेलता है। बिल्ली उसे अपने बच्चों की भांति प्यार करती है। यह व्यवहार का परिवर्तन कैसे हुआ ? इन सब प्रयोगों के आधार पर माना जा सकता है कि आदमी कि आदतें बदल सकती है। उसका व्यवहार और आचार बदल सकता हैं हमारी प्राण-विद्युत और जैविक विद्युत हमारे आचार व्यवहार को नियंत्रित करती हैं। यदि इस विद्युत की धारा को बदला जा सके तो भावना में परिवर्तन आ जाता है।
तनाव का मूल कारण
ग्रन्थियों का स्राव
तनाव का मूल कारण है भावना | शरीरशास्त्र की भाषा में जो एण्डोक्राइन ग्लैण्डस हैं, उनके स्राव हमारे व्यवहार और आचरण को ज्यादा प्रभावित करते हैं। आचरण को प्रभावित करती है पिट्यूटरी और एड्रीनल ग्लैण्ड । सबसे ज्यादा हमें प्रभावित करने वाली तीन ग्रन्थियां है। एक पिट्यूटरी और दो एड्रीनल । जितना भय, जितनी वृत्तियां, अहंकार, लोभ उत्तेजना सारे आवेग