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[जैन विद्या और विज्ञान ।
4. भाव (इमोशन)
इमोशन बड़ी समस्या है। वह नेगेटिव हो तो एकांत आग्रह बन जाता है। इसलिए आवश्यकता है कि सबसे पहले इमोशन पर कन्ट्रोल करना चाहिए। इसका शिक्षण आवश्यक है। आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं कि हमने इसका कारण खोजा है। मस्तिष्क का दायां हेमिस्फियर जागृत हो जाए तो बहुत सारे झगड़े समाप्त हो सकते हैं। इसे बुद्धि से नहीं सुलझाया जा सकता है। ध्यान के प्रयोग से, सिंपेथेटिक एवं पैरासेंपेथेटिक नाड़ी तंत्र के संतुलन से इसे सुलझाया जा सकता हैं। शरीर का अपना एक नियम है। अभी मेडिकल साइंस प्राण तक नहीं पहुंचा हैं। इसका कन्सेप्ट (Concept) स्पष्ट नहीं है। विद्यार्थियों को छोटी उम्र में ही यदि प्रशिक्षण दिया जाए तो इस समस्या से निपटा जा सकता है। मेडिकल साइंस के अनुसार साधारणतः सीधे हाथ से काम करने वाले व्यक्ति में बायां हेमिस्फेयर (Left Hemisphere) प्रमुख होता है। लेकिन अवचेतन प्रतिक्रियाएं दायें हेमिस्फेियर से नियंत्रित होती हैं। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार क्रोध और अहंकार (Ego) से बचने के लिए फ्रंटल लोब का जो हमारा इमोशनल एरिया हैं उस पर लम्बे समय तक ध्यान करना बहुत जरूरी हैं। उससे नेगेटिव भाव' बदलते हैं। पोजीटिव भाव बढ़ते हैं। मस्तिष्क का एक भाग लिम्बिक सिस्टम है। हाइपोथेलेमस पर ध्यान करने से हायर कोन्सेन्स के स्पन्दन उभरते हैं। इसलिए हाइपोथेलेमस पर सफेद रंग का ध्यान करने से क्रोध का आवेग क्षीण हो जाता
5. भय
मनोविज्ञान की दृष्टि से संवेगात्मक व्यवहार और संवेगात्मक अनुभव ये दोनों हाइपोथेलेमस से पैदा होते हैं। ये दोनों इमोशन हैं। हमारे शरीर में ऐसे केन्द्र हैं जहां से नाना प्रकार की प्रवृतियों का संचालन होता है। संवेग का संचालन शरीर से होता हैं। सारे संवेग हाइपोथेलेमस से पैदा होते हैं। भय का यही स्थान है।
कर्म शास्त्रीय कारण है कि मूर्छा है, मोह है इसलिए भय पैदा होता है। मोह की अनेक प्रकृतियों में एक प्रकृति है - भय। मोह के कारण ही मनष्य यथार्थ को नहीं समझ सकता। सच्चाई को न समझ सकने के कारण वह जाने अनजाने भय की स्थिति में चला जाता है। उसे लगता है कि यदि शरीर छूट गया तो सब कुछ छूट गया। शरीर चला गया तो सब कुछ चला गया। उसका आदि दर्शन है शरीर, मध्य दर्शन है शरीर, अन्त दर्शन है शरीर।