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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान]
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सारे व्यवहारों की, आचरणों की, व्याख्या ज्ञात मन के माध्यम से करना चाहते हैं। यह कभी संभव नहीं होगा केवल ज्ञात मन के द्वारा जो व्याख्या की जाएगी, वह अधूरी होगी, मिथ्या होगी। जब ज्ञात और अज्ञात दोनों मनों की समष्टि करेंगे तो सम्पूर्ण व्याख्या होगी, अज्ञात मन के लिए फ्रायड ने 'डेफ्त साइकोलॉजी' की व्याख्या की। 'डेफ्त साइकोलॉजी' में केवल ज्ञात मन की व्याख्या नहीं होती, अज्ञात मन की व्याख्या होती है। प्रत्येक व्यवहार के लिए अज्ञात मन की व्याख्या होती है कि मनुष्य का व्यवहार अज्ञात से ही हो रहा है। ज्ञात मन के द्वारा यह ऐसा व्यवहार
नहीं हो रहा है। चित्त और मन की भिन्नता . आज के मनोविज्ञान ने जो अवचेतन मन की व्याख्या की, वह व्याख्या भारतीय दर्शनों ने कर्मवाद के आधार पर की। सूक्ष्म चेतना और चित्त के आधार पर की। मनोविज्ञान में मन और चित्त - दोनों में भेद नहीं किया गया किन्तु जैन दर्शन में बहुत स्पष्ट भेद किया गया है कि मन भिन्न है और चित्त भिन्न हैं। मन अचेतन है और चित्त चेतन है। मन ऊपर का हिस्सा है जो चित्त का स्पर्श पाकर चेतना जैसा प्रतीत होता है। चित्त हमारी भीतर की सारी चेतना का प्रतिनिधित्व करता है। अज्ञात मन, अवचेतन मन को चित्त कहा जा सकता है और ज्ञात मन को मन कहा जा सकता है। चेतन मन में जितनी शक्ति हैं, उससे अनंतगुनी शक्ति है अवचेतन मन में। चेतन मन चालाक हैं, अवचेतन मन भोला है, पर है अनन्त शक्ति का भंडार। यह काम करना है, यह नही करना है, चेतन मन आपकी बात सुन लेगा, परन्तु करेगा वही जो पहले जंचा हुआ है। अवचेतन मन ऐसा नहीं है। अवचेतन मन आप जो कहेगें और यदि उसने उस बात को पकड लिया तो वही करेगा जो आपने कहा है। जैसे चेतन मन और अवचेतन मन का अन्तर है, वैसे ही स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर की शक्ति में अन्तर है। स्थूल शरीर की शक्ति एक पैसा है तो सूक्ष्म शरीर की शक्ति निन्यानवे पैसे हैं। कितना बड़ा अन्तर है ? सूक्ष्म शरीर को जागृत करने का अर्थ है - विद्युत भंडार
का निर्माण करना। किंतु हमें चलना होगा इसी स्थूल शरीर से। यह हमारी • शक्तियों को प्रकट करने का पहला साधन है। साधना की दृष्टि से इस शरीर
का मूल्य है।