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________________ 2541 [जैन विद्या और विज्ञान निरंतर अवसर बना रहता है। व्यक्ति के आत्म-विकास का पथ कभी अवरुद्ध नहीं होता। 2. आदत कैसे बदलें ? मनोविज्ञान में आज व्यावहारिक मनोविज्ञान का अध्ययन हो रहा है। व्यवहार के आधार पर मनुष्य की मानसिक अवस्थाओं का अध्ययन हो रहा । है, वृतियों का अध्ययन हो रहा है। लगता है मनुष्य ने समग्रता की दिशा को पकड़ा है। आचार्य महाप्रज्ञ का कहना है कि हमने प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में भी इस मूल बात को पकड़ा है कि बच्चे की प्रवृत्ति को बदलना है तो हमें वृत्ति पर ध्यान देना होगा। जब तक पिट्यूटरी और थायराइड ग्रन्थि (ग्लैण्ड) को जागृत नहीं किया जाता तब तक हजार बार कहने पर भी, हजार, . प्रयत्न करने पर भी बच्चे को नहीं बदला जा सकता। सीधा उपाय एक ही है, बच्चे की आदतों को बदलना है तो दर्शन-केन्द्र पर ध्यान का अभ्यास कराओ। प्रवृत्तियां अपने आप बदल जायेंगी। क्रोध, अहंकार, अनुशासनहीनता की समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। दर्शन केन्द्र, दोनों भृकुटियों के बीच अवस्थित है। 3. चित्त और मन (i) फ्रायड का मत पुरुष अनेक चित्त वाला है। मन तो एक ही है। चित्त की वृतियों के कारण और अनेक चित्त के कारण मन भी अनेक जैसा प्रतिभासित होने लग जाता है। अनेक हैं, हमारे चित्त। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने ठीक कहा था कि मनुष्य का मन एक हिमखण्ड जैसा होता है। हिमखण्ड का बहुत सारा भाग समुद्र में छिपा होता है। केवल थोड़ा सा ऊपर का सिरा दिखाई देता हैं। जितना दिखाई देता है हिमखण्ड, उतना ही नहीं है। बहुत बड़ा है। दिखने वाला छोटा और न दिखने वाला बहुत बड़ा। ज्ञात छोटा, अज्ञात बड़ा। (i) जुंग का मत एक अन्य मनोवैज्ञानिक जुंग ने मन की तुलना एक महासागर से की है। मन एक महासागर है। उसमें ज्ञात मन केवल एक . द्वीप जैसा है। अज्ञात मन महासागर जैसा और ज्ञात मन महासागर में होने वाले द्वीप जैसा, एक छोटे टापू जैसा है। हम लोग अपने
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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