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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ]
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मनोविज्ञान
विज्ञान की दो शाखाएं हैं। एक चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) और दूसरा मनोविज्ञान ( Psychology) | मेडीकल सांइस के लोगों नें सारी बीमारियों का आधार कीटाणु और विषाणु बताया है किन्तु मनोवैज्ञानिकों ने बताया है कि इन से भी बड़ा कारण हैं मानसिक विकृतियां, मनोबल की कमी । जिसका मनोबल कमजोर होता हैं, वह व्यक्ति रोग से आक्रान्त हो जाता है।
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जैन मनोविज्ञान आत्मा, कर्म और नो-कर्म की त्रिपुटीमूलक है। आचार्य महाप्रज्ञ ने आधुनिक मनोविज्ञान और जैन दर्शन की मनोवैज्ञानिक धारणाओं में समानता प्रदर्शित करते हुए अनेक प्रकरण प्रस्तुत किए हैं, वे पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं ।
1. मनोवृतियां का परिष्कार
मनोविज्ञान के अनुसार मनुष्य में कुछ मौलिक मनोवृतियां होती है। भूख, प्यास, काम, लड़ना आदि चौदह मौलिक मनोवृतियां बतलाई हैं । जैन दर्शन की भाषा में कहें तो मनुष्य में कर्म का संस्कार होता है। हम बन्धे हुए हैं। मनोविज्ञान की भाषा में हम मौलिक मनोवृतियों से बंधे हुए हैं और दर्शन की भाषा में हम कर्म-संस्कार से बन्धे हुए हैं।
बुराइयां छोड़ी जा सकती हैं
आचार्य महाप्रज्ञ ने कर्म संक्रमण की नई परिभाषा देते हुए उल्लेख किया है कि कर्म-संस्कारों को बदला जा सकता है। मनोविज्ञान का भी सिद्धान्त है कि मौलिक मनोवृतियों का परिष्कार किया जा सकता है। अगर बदलने की और परिष्कार करने की बात नहीं होती तो आदमी जैसा है, वैसा ही रहता, कोई परिवर्तन नहीं आता। भूख एक मौलिक मनोवृत्ति है। भूख कर्मशास्त्रीय भाषा में वेदनीय कर्म का उदय है। एक आदमी जो एक दिन भूखा नहीं रह सकता वह लम्बी तपस्या कर लेता है। यह परिवर्तन का परिणाम है। इसी प्रकार इन्द्रिय जगत में रागात्मक भाव से रहने वाला व्यक्ति, वैराग्य को उत्पन्न कर सकता है। अतः बुराइयां छोड़ी जा सकती हैं। लेखक की . दृष्टि में कर्म संक्रमण के द्वारा व्यक्ति के लिए अपनी भूलों को सुधारने का