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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ]
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'शरीर के अतिरिक्त उसका कोई दर्शन नहीं है। शरीर के प्रति इतनी प्रगाढ़ आस्था होती है तब भय पैदा होना स्वाभाविक है। भय का एक संवेग है। मनोविज्ञान की भाषा में पलायन एक प्रवृति है और उसका संवेग है भय । जिस समय भय का संवेग जागृत होता है उस समय एड्रीनल बहुत सक्रिय हो जाती है। अधिक शक्ति चाहिए। एड्रीनल का स्राव अतिरिक्त नहीं होता हैं तो शक्ति नहीं होती। भय की स्थिति में एड्रीनल का स्राव बढ़ता है। 6. क्रोध और हिंसा आदिम मस्तिष्क की देन
स्थानांग सूत्र में क्रोध का वर्णन आया है। आचार्य महाप्रज्ञ ने इसका मनोविज्ञान से तालमेल करते हुए लिखा है कि स्थानांग सूत्र में क्रोध दो प्रकार का बताया है - आत्म-प्रतिष्ठित, पर-प्रतिष्ठित
इन सूत्रों में सूत्रकार ने एक मनोवैज्ञानिक रहस्य का उद्घाटन किया है। एक समस्या दीर्घकाल से उपस्थित होती रही है कि क्रोध का सम्बन्ध मनुष्य के अपने मस्तिष्क से ही है या बाहृय परिस्थितियों से भी है। वर्तमान के वैज्ञानिक भी इस शोध में लगे हुए हैं। इन्होंने मस्तिष्क के वे बिन्दु खोज निकाले है, जहाँ क्रोध का जन्म होता हैं। डा. जोस.एम. आर. डेलगाडो ने अपने परीक्षणों द्वारा दूर शान्त बैठे बन्दरों में विद्युत धारा से उन विशेष बिन्दुओं को छूकर लड़वा दिया। यह विद्युत धारा के द्वारा मस्तिष्क के विशेष बिन्दु की उत्तेजना से उत्पन्न क्रोध है। इसी प्रकार अन्य बाहय निमित्तों से भी मस्तिष्क का क्रोध बिन्दु उत्तेजित होता हैं और क्रोध उत्पन्न हो जाता है। यह पर'प्रतिष्ठित क्रोध है। आत्म-प्रतिष्ठित क्रोध अपने ही आन्तरिक निमित्तों से उत्पन्न होता है। क्रोध चतुः प्रतिष्ठित होता है
1. आत्म-प्रतिष्ठित (स्व-विषयक) जो अपने ही निमित्त से उत्पन्न
होता है। 2. पर-प्रतिष्ठित (पर-विषयक) जो दूसरे के निमित्त से उत्पन्न होता
3. तदुभय प्रतिष्ठित-जो स्व और पर दोनों के निमित्त से उत्पन्न
होता है। 4. अप्रतिष्ठित – जो केवल मोहनीय के उदय से उत्पन्न होता है,
आक्रोश आदि बाह्य कारणों से उत्पन्न नहीं होता।