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________________ प्रेक्षाध्यान और रोग निदान] [251 लेश्या का सिद्धान्त रंग और आभामण्डल के बारे में उनका कहना है कि रंगों का प्रभाव बहुत व्यापक होता है। रंग व्यक्ति की मनःस्थिति को प्रभावित ही नहीं, परिवर्तित भी कर देते हैं। देखा गया है कि लाल रंग से गुस्सा बढ़ता है, नीले रंग से सुस्ती बढ़ती है। यह रंगों का प्रभाव अर्थात् लेश्या का सिद्धान्त जीवन से जुड़ा है। हमारे जीवन की सफलता या असफलता में यह बहुत बड़ा कारक है। हम इसे समझकर अपने जीवन को सफलता की दिशा में ले जा सकते हैं। इस सारे सिद्धान्त को जैन दर्शन की भाषा में लेश्या का सिद्धान्त कहा गया है। लेश्या हमारे जीवन से जुड़ी सच्चाई है। भाव की विशुद्धि से लेश्या विशुद्ध हो जाती है। आभामंडल बदल जाता है। आभामंडल से उस बीमारी का भी पता चल सकता है जो होने वाली है। अच्छा भाव है तो आभामण्डल अच्छा होगा और बुरा भाव है तो आभामण्डल विकृत हो जाएगा। बड़ी बीमारियों से बचना है तो भाव केन्द्र शुद्ध करना होगा। श्वास और रंग का संबंध प्रेक्षाध्यान में आभामण्डल के ध्यान के बहुत प्रयोग हैं। लेश्या ध्यान पूर्ण रूप से इसके लिए ही है कि किस तरह से हम विभिन्न रंगों का ध्यान कर अपना आभामण्डल शुद्ध कर सकते हैं। हमारे रंग श्वास के साथ जुड़े हैं। बाहर के जितने रंग हैं हमारे श्वास में भी रंग हैं। इन सभी पुद्गलों से आभामण्डल संबंधित हैं। प्रेक्षाध्यान में श्वास के साथ रंगों का ध्यान करके आभामण्डल शुद्ध किया जा सकता है और उन बीमारियों से बचाव किया जा सकता है जिसका आभास आभामण्डल से होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण ___ वैज्ञानिकों ने रंगों का मानवीय प्रकृति से सम्बन्ध बताया है। लाल, नारंगी रंगों से मानव की प्रकृति में उष्मा बढ़ती है। प्रकाश के वर्णपट्ट में भी लाल रंग, अधिक उष्मा वाला माना गया है। नीला रंग शीतल होता है आदि अतः वैज्ञानिक दृष्टिकोण आज कलर थैरेपी से सामान्यतः सहमत है। कुछ वैज्ञानिकों ने अल्ट्रा वायलेट किरणों के द्वारा मनुष्य के चारों ओर बने आभामण्डल को देखा है, उसका रंग पहचानकर, बीमारियों की भविष्यवाणी भी की है जो सही साबित हुई है। आभामण्डल केवल प्राणियों का ही नहीं होता अपितु पौधों के आसपास भी सूक्ष्म विद्युतीय गतिविधियां देखी गई हैं। . अतः आभामण्डल की अवधारणा वैज्ञानिक क्षेत्र में मान्य होती जा रही हैं।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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