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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ]
उसकी भीतर के साथ संवादिता है अथवा नहीं, उसकी कसौटी है लेश्या । "लेश्या आत्म परिणामों की संवाहिका है । लेश्या का पुद्गल पदार्थ रंग प्रधान होता है। लेश्याएं छह हैं। उनके रंग कृष्ण, नील, कापोत, तेजस, पद्म और शुक्ल हैं। प्रथम तीन अप्रशस्त है, अंतिम तीन प्रशस्त हैं। ये रंग व्यक्ति के शरीर और मन की स्थिति के सूक्ष्म हस्ताक्षर हैं। इनका शरीर के चारों ओर आवागमन बना रहता है इसे आभामण्डल कहा जाता है।
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रंग चिकित्सा का संबंध मुख्यतः आभामण्डल से है। आभामण्डल एक तरह का रंगीन औरा है जो व्यक्ति के चारों ओर देखा जाता है लेकिन उसका घनीभूत रूप मस्तक के पीछे चारों ओर होता है।
आभामण्डल द्वारा रोगों की सूचना
आचार्य महाप्रज्ञ. के अनुसार हमारे शरीर के चारों ओर रश्मियों का एक होता है। वह सूक्ष्म तरंगों के जाल जैसा या रुई के सूक्ष्म तंतुओं के व्यूह जैसा होता है। ऊपर-नीचे, दाएं-बाएं - चारों ओर फैला हुआ होता है। यह आभामण्डल है। जैसी भावधारा होती है, वैसी ही उसकी संरचना हो जाती है। वह एकरूप नही होता, बदलता रहता है। निर्मलता, मलिनता, संकोच और विकोच ये सारी अवस्थाएं उसमें घटित होती रहती हैं। इसके माध्यम से चेतना के परिवर्तन जाने जा सकते हैं, शरीर और मन के स्तर पर घटित होने वाली घटनाएं जानी जा सकती हैं। घटनाएं पहले सूक्ष्म शरीर में घटित होती है। वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि शरीर में जो रोग होगा उसकी पूर्व सूचना तीन महीने पहले मिल जाएगी। तीन महीने से पहले उनका प्रतिबिम्ब आभामंडल पर हो जाता है। इसके अध्ययन से भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पता लगाया जा सकता है। रोग और मृत्यु एवं स्वास्थ्य और जीवन आदि अनेक तथ्यों के विषय में भविष्यवाणी की जा सकती है ।
जीवन प्रसंग
आभामण्डल विशेषज्ञ श्री सुंदर राजन ने आचार्य महाप्रज्ञ के आभामण्डल का विश्लेषण करते हुए कहा 'महाराज, ऐसा आभामण्डल किसी विरल व्यक्ति का होता है। सारे रंग पवित्र, प्रकाशमय और शक्तिशाली है। आपका आभामण्डल चमकते हुए पीले, नीले और हरे रंग से आकीर्ण है। प्रज्ञा, अन्तर्दृष्टि, और अतीन्द्रिय चेतना से सम्पन्न होने की सूचना देता है, आपका आभामण्डल। सबसे दुर्लभ और विशिष्ट बात यह है कि इस आभामण्डल में एक भी अशुद्ध और विकृत रंग नहीं है।'