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[ जैन विद्या और विज्ञान
है कि ई.ई.जी. में अल्फा तरंगें बढ़ जाती हैं जो कि मानसिक शांति की द्योतक
हैं।
उपर्युक्त आधार से प्रेक्षाध्यान के प्रयोग थैरेपी में किए गए हैं। थैरेपी में प्रेक्षा का प्रयोग नया है। आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा है "हृदय रोग, हाइपरटेंशन, उच्च रक्तचाप, डिप्रेशन, उदर विकार आदि रोगों को मिटाने में उन्हें अच्छी सफलता मिली है। काम मनोरोगों के निवारण में प्रेक्षाध्यान अचूक प्रयोग है। कैंसर की बीमारी का कोई ईलाज तो अभी हमारे पास नहीं है पर इस भयंकर बीमारी में होने वाले कष्ट को कम किया जा सकता है।" 3. ध्वनि चिकित्सा
प्रेक्षाध्यान में ध्वनि चिकित्सा के महत्त्व को बताते हुए कहा है कि शक्ति जागरण का एक प्रमुख उपाय है - मंत्र विद्या । इस विद्या के द्वारा सुप्त केन्द्रों को जागृत किया जा सकता है। मंत्र के साथ लयबद्ध श्वास का प्रयोग और शुद्ध लयबद्ध उच्चारण दोनों चाहिए। श्वास और उच्चारण के साथ भावना का योग भी बहुत जरूरी है। भावना के योग के साथ एकात्मकता सधती है, मंत्र भी चैतन्य हो जाता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने ध्वनि चिकित्सा के माध्यम से कुछ रोगों के निदान बताए हैं।
1. हृदय रोग में 'लं' मंत्राक्षर का जप उपयोगी है। . .
2. लीवर के रोग में "हूँ" मंत्राक्षर का जप उपयोगी है। अ-ह-म् का उच्चारण
उनका मानना है कि ऐसा कोई अक्षर नहीं है जो मंत्र नहीं बन सकता। प्रेक्षाध्यान में साधक सर्वप्रथम अर्हम् की नौ बार मंगल भावना कर उस नाद से अपने चारों ओर एक रक्षा कवच बनाता है। ध्वनि की शास्त्रीय मीमांसा में कहा गया है कि अ-ह-म् के उच्चारण से क्रमशः विद्युत केन्द्र (कंठ थायराइड ग्रन्थि) मस्तिष्क का अगला भाग - शांति केन्द्र और उदान प्राणकेन्द्र सक्रिय होते हैं जिसका प्रभाव मन और शरीर पर पड़ता है। भारतीय चिकित्सा पद्धति में भी ऐसे प्रयोग हैं जिनमें कम से कम चीरफाड़ करनी पड़ती है। 4. रंग चिकित्सा - कलर थेरेपी
आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार व्यक्तित्व की व्याख्या का महत्त्वपूर्ण सूत्र है - लेश्या, भावधारा और आभामण्डल। जो बाहर से दिखाई दे रहा है,