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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान]
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होते हैं उनसे विभिन्न प्रकार के परिणाम घटित होते हैं - शरीरप्रेक्षा में इन्हें देखना है। उनसे शरीर के दोष विसर्जित होते हैं। परिभाषा . आचार्य महाप्रज्ञ ने ध्यान साधना के लिए शरीर को भी उतना ही मूल्य दिया है जितना आत्मा को। शरीर को साधे बिना, आत्मा सधती नहीं। इसी दृष्टि से उन्होंने शरीर, श्वास, प्राण, मन, भाव, कर्म और चेतना के संयुक्त नाम को प्रेक्षाध्यान कहा है और इन सातों सूत्रों पर विचार और प्रयोग किए हैं। 2. प्रेक्षा के तीन आयाम हैं।
(i) 'योग (ii) ध्यान (iii) थैरेपी
योग और ध्यान का परस्पर संबंध अति प्राचीन काल से रहा है। योग आध्यात्मिक चिकित्सा है। उससे मनुष्य के स्वभाव को बदला जा सकता है। • वर्तमान में जो बड़ी बीमारी है वह न शारीरिक है, न मानसिक है, बल्कि वह भावनात्मक है। इसकी चिकित्सा प्रेक्षाध्यान से संभव है। महाप्रज्ञजी का यह विश्वास इस तथ्य पर आधारित है कि प्रेक्षा से क्रोध, अहंकार, वासना (आवेग
और संवेग) को नियंत्रित किया जा सकता है। प्रेक्षा पद्धति से मस्तिष्क जागृत होता है, ग्रंथि तन्त्र के स्रावों में परिवर्तन होता है और श्रेष्ठ भावों का निर्माण होता है जो कि रोग को मिटाने में सहायक होता है। इस धारणा की पुष्टि में आचार्य महाप्रज्ञ ने अनेक शिविरों का आयोजन किया है और अनेक व्यक्तियों पर प्रेक्षा के प्रयोग किए है। उससे उनका यह विचार पुष्ट हुआ है कि वैज्ञानिक शोध से प्रेक्षाध्यान अधिक उपयोगी हो सकता है। वैज्ञानिक शोध
यह महत्त्वपूर्ण अवधारणा है कि ध्यान/योग मस्तिष्क की विभिन्न क्रियाओं में तथा अन्तः स्रावी ग्रन्थियों के स्राव में परिवर्तन कर अपना असर रोगों पर करता है। कुछ वैज्ञानिक अनुसंधानों में यह पाया गया है कि ध्यान ऑक्सीजन की आवश्यकता कम करता है, खून में लेक्टेट कम करता है तथा हृदय के कार्यभार को 25 प्रतिशत तक कम कर सकता है। कई वैज्ञानिक शोध पत्रों में इस तरह के ध्यान तथा यौगिक क्रियाओं में यह पाया