________________
246]
[ जैन विद्या और विज्ञान .
प्रेक्षा
1. प्रेक्षा की मूल अवधारणा
प्रेक्षाध्यान का प्रेरक सूत्र है - सत्य की खोज स्वयं करो। प्रेक्षाध्यान का मूल मंत्र है - आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो। प्रेक्षा शब्द का अर्थ है - प्र + ईक्ष (धातु) अर्थात् गहराई से देखना।
प्रेक्षाध्यान का अभिप्राय है - स्वयं को इतनी गहराई से देखो कि अपने श्वास, शरीर, प्राण और संस्कारों के स्पन्दनों को देख सको। . .
प्रेक्षाध्यान का उद्देश्य है - चित्त की निर्मलता, आधि, व्याधि और उपाधि से परे समाधि की अवस्था का वरण।
प्रेक्षाध्यान का परिणाम है - चैतन्यकेन्द्रों का जागृत होना। प्रयोग
इस सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि में आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षा के विभिन्न प्रयोग निर्धारित किए हैं, वे आठ प्रकार के हैं।
(i) कायोत्सर्ग (ii) अंतर्यात्रा (iii) श्वासप्रेक्षा (iv) शरीरप्रेक्षा (v) चैतन्यप्रेक्षा (vi) लेश्याध्यान (vii) भावना (viii) अनुप्रेक्षा
इनमें प्रारम्भिक प्रयोग शरीर प्रेक्षा का है। मेडिकल साइंस बताता है कि हमारे शरीर में सत्तर प्रतिशत पानी है। शरीर पानी का ही पुतला है और समुद्र से कम नहीं है। इतना बड़ा समुद्र और इतनी ऊर्मियां जिनकी कल्पना नहीं की जा सकती। शरीरप्रेक्षा का अर्थ है कि उन ऊर्मियों को देखना, उन प्रकंपनों को देखना जो हमारी प्रवृत्तियों का संचालन कर रही है। यह जैविक रासायनिक प्रक्रिया है, जहां विभिन्न प्रकार के रसायन (Chemicals) पैदा