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प्रेक्षाध्यान और रोग निदान (थैरेपी)
साधना के क्षेत्र में आचार्य महाप्रज्ञ के दो महत्त्वपूर्ण अवदान
(1) प्रेक्षाध्यान (2) जीवन विज्ञान
ये दोनों प्रवृत्तियां दार्शनिक और धार्मिक ग्रन्थों पर ही आधारित नहीं हैं बल्कि विज्ञान, शरीर शास्त्र और मनोविज्ञान संबंधी अधुनातन खोजों पर आश्रित हैं। इस कारण ये प्रवृत्तियां जहाँ आध्यात्मिक चेतना के विकास में सहयोगी हैं वहाँ प्रेक्षाध्यान शरीर चिकित्सा में तथा जीवन विज्ञान मूल्यपरक शिक्षा में लोकप्रिय हो रही हैं। व्यक्तित्व का निर्माण, तनावविसर्जन, स्वास्थ्य और जीवन दर्शन जैसे महत्त्वपूर्ण विषय प्रेक्षाध्यान के मूल स्रोत हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने विज्ञान की प्रमुख विधाओं का गहनता से अध्ययन किया है। उसी के आधार पर दर्शन और शरीर विज्ञान की पूरकता प्रतिपादित करते हुए लिखते हैं कि दर्शन से ज्ञात होता है कि स्थूल दिखाई देने वाला शरीर, सूक्ष्म शरीर के कारण हैं और शरीर विज्ञान, शरीर के सूक्ष्म कोशों की सूचना देता हैं। दर्शन और विज्ञान दोनों सूक्ष्म को खोज रहे हैं अतः इनकी पूरकता में संदेह नहीं किया जा सकता। जैन दर्शन में आत्मा को चेतना रूप कहा है और चेतना का देह-विस्तार होता है। इस दृष्टि से शरीर के शक्ति केन्द्र, नाड़ी तंत्र आदि का ज्ञान आवश्यक है। आचार्य महाप्रज्ञ ने अध्यात्म और विज्ञान को निकट लाने का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया है। इस अध्याय में हम प्रेक्षा, मनोविज्ञान के सिद्धान्त और थैरेपी में हुए अनुप्रयोगों का अध्ययन करेंगे। उसके मुख्य बिंदु निम्न प्रकार हैं -
(i) प्रेक्षा (ii) मनोविज्ञान (iii) शरीर के शक्ति केन्द्र - ग्रन्थियां तथा नाड़ी तंत्र (iv) शरीर रोगों की चिकित्सा में प्रेक्षा के प्रयोग