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जैन गणित और कर्मवाद]
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- जब पुद्गल आत्मा से बंध कर कर्म बनते हैं तो आकर्षित होते हैं और उदय अवस्था में जब आत्मा से छटते हैं तो विकर्षित होते हैं। जैन साहित्य में कर्म आठ प्रकार के बताए हैं। वे हैं - ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय। यहां यह जानना आवश्यक है कि कर्मों के बंध का कारण मुख्यतः मोहनीय तथा नामकर्म है शेष कर्म नहीं। अतः गणित में मोह कर्म तथा नामकर्म के गुणांशों का विशेष महत्व है।
द्रव्य के गुणांशों के संबंध में हमने पूर्व में चर्चा की है कि द्रव्य का कोई गुणांश अगर शून्य की ओर जाएगा तो दूसरा कोई गुण अनन्त को प्राप्त कर लेगा। अतः कर्मों के स्पर्श, रस, गंध और वर्ण के अविभागी प्रतिच्छेद (गुणांश) स्निग्ध, रुक्ष के मूल अविभागी प्रतिच्छेदों से संबंध बनाए रखते हैं। कर्मों के संक्रमण, उद्वर्तन और अपवर्तन इसी आधार से होते हैं।
. प्रोफेसर जैन ने प्रतीक गुणांश के बाद संदृष्टियों के संबंध में लिखा है कि संदृष्टियों और उसके अर्थ (प्रमाण) आधार पर डाटाबेस बनता है। इस हेतु बताया गया है कि - .
(i) विवक्षित द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के जो प्रमाण आदि है, उसे अर्थ । कहते हैं। (ii) अर्थ की संदृष्टि अथवा सहनानी को संदृष्टि कहते हैं।
अतः अंक, अर्थ एवं आकार रूप, संदृष्टि को सावधानी से समझ लेने पर कर्म सिद्धान्त की गणितीय प्रणाली को भली भांति समझा जा सकता है और उसके. प्रायोगिक रूप पर अनुसंधान किया जा सकता है। आधुनिक जैव भौतिकी से कर्म-सिद्धान्त के गणितीय नमूनों की तुलना कर नई विधाएं और आयाम खोले जा सकते हैं जो मुख्यतः न्यूरोनल (नाड़ी संबंधी) मस्तिष्क की रचना और क्षमता से संबंधित है। ज्ञान प्रणाली पर आधारित सूचना तंत्र जीव
और पुद्गल के कर्म संबंध को मस्तिष्कादि के कृत्रिम नमूने बनाकर अध्ययन किया जा सकता है।
___ कर्म के मुख्य दो भेद हैं - द्रव्य कर्म और भाव कर्म। पुद्गल द्रव्य का पिण्ड द्रव्य कर्म है और उससे जो आत्मीय शक्ति प्रभावित होती है वह भाव कर्म है। गणित में द्रव्य कर्म के डाटा काम आते हैं। कर्म एक्शन (action) का रूप लेकर अपनी अवस्था को प्रकृति, प्रदेश, अनुभाग, स्थिति के प्रमाणों से अनेक समीकरण देता है। इसके अतिरिक्त औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपमिक औदयिक एवं पारिणामिक भावों का भी अर्थ ग्रहण होता है। एक दूसरे की