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[ जैन विद्या और विज्ञान .
कर्मवाद की गणितीय मीमांसा
आचार्य महाप्रज्ञ ने कर्मवाद को समझने के लिए मनोविज्ञान और गणित दोनों को आवश्यक बताया है। वे लिखते हैं कि 'मनोविज्ञान के अतिरिक्त कर्मवाद, गणित की जटिलताओं से बहुत गुंफित है। पिछले अध्याय में हमने मनोविज्ञान के बारे में पढ़ा है, अब हम गणित संबंधी चर्चा करेंगे। कर्म सूक्ष्म पदार्थ है। सूक्ष्म पदार्थ तरंगित हैं और तरंग की गणित में उच्च गणितीय समीकरणों का उपयोग होता है जो साधारण पाठक के अध्ययन के लिए कठिन है। इस दृष्टि से हम यहां केवल विषय प्रवेश करेंगे।
जैन गणित के क्षेत्र में प्रो. एल.सी.जैन, जबलपुर का कार्य उल्लेखनीय एवं प्रशंसनीय है। जैन कर्मवाद की गणितीय मीमांसा में लिखा है कि - (i) किसी भी गणितीय प्रणाली में अध्ययन के पूर्व उसमें प्रविष्ट
प्रतीकों की जानकारी आवश्यक है। गोम्मटसारादि ग्रन्थों की टीकाओं में इस प्रणाली के सार संक्षेप रूप अध्ययन हेतु, साथ ही उन्हें स्मरण रखने हेतु प्रतीकमय सामग्री निर्मित की गई, जो पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं है। तिलोयपण्णत्ती जैसे ग्रन्थों में कुछ प्रतीकबद्ध सामग्री है और कुछ धवला टीका ग्रन्थों में भी उपलब्ध होती है। किंतु विशाल पैमाने पर यह 'सामग्री अंक संदृष्टि तथा रेखा संदृष्टि रूप में केशववर्णी की कर्णाटकी टीका में दृष्टिगत होती है। इसी प्रकार लब्धिसार, क्षपणसार की टीका में संभवतः माधवचंद्र त्रैविद्य तथा ज्ञानभूषण के शिष्य नेमीचन्द्र (16 वीं सदी) द्वारा जो संदृष्टि प्रयोग हुआ वह भी विलक्षण है
और विशेषकर धर्म के मर्म को कर्म के गणित द्वारा प्रकट करता
प्रतीत होता है। (ii) प्रतीकों के ज्ञान के बाद, अविभागी प्रतिच्छेद का वर्णन किया है।
द्रव्य के गुणों में गुणांश का विकल्प ही अविभागी प्रतिच्छेद है। कर्म सिद्धान्त के अध्ययन में परमाणुओं के स्निग्ध रुक्ष स्पर्श के गुणांशों का ज्ञान होना चाहिए क्योंकि आकर्षण-विकर्षण का कारण ये ही स्पर्श है।