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जैन गणित और कर्मवाद ]
उपलब्ध हैं। हम ऐसा कुछ सोच भी नहीं सकते जिसका तन्त्र उपलब्ध न हो। यह कहा जा सकता है कि ऐसी कोई नई घटना संभव नहीं, जो अतीत में कभी न हुई हो। जैन साहित्य में जातिस्मरण ज्ञान आदि का वर्णन है जो अतीत का ज्ञान कराता है- पूर्व भव को दिखा देता है। ऐसा लगता है कि सूक्ष्म के व्यवहार के संबंध में जैन साहित्य में सर्वाधिक सूचनाएं उपलब्ध हैं जो आधुनिक विज्ञान के परिणामों से सुसंगत प्रतीत होती है। यह जैन दर्शन की विलक्षण देन है कि कर्म सिद्धान्त पर अत्यधिक साहित्य लिखा गया है। श्रुत घटना
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एक श्रुत घटना के अनुसार, दक्षिण भारत के किसी जैन विद्वान ने, जर्मन विद्वान डॉ. आल्सडोर्फ को सूचित किया कि जैन आगम का लुप्त बारहवां आगम दृष्टिवाद उपलब्ध हो गया है। इस पर आल्सडोर्फ को सुखद आश्चर्य हुआ और उसके कुछ पृष्ठ मंगवाए । उनकों अध्ययन करने के बाद उन्होंने, सूचित किया कि यह तो कर्म-ग्रन्थ के पृष्ठ हैं। भूल यह हुई थी कि इस कर्मग्रन्थ के इतने अधिक वाल्यूमस् थे कि भारतीय विद्वान ने सोचा कि इतना विशाल साहित्य केवल दृष्टिवाद का ही हो सकता है। इससे ज्ञात होता है कि कर्म-मीमांसा पर बहुत लिखा गया है फिर भी इसके भौतिक पक्ष की कम विवेचना हुई है । आज विज्ञान के सहारे सूक्ष्म पदार्थ को समझा जा • सकता है तथा कर्म वर्गणाओं को विस्तार से जाना जा सकता है।