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________________ 238] [ जैन विद्या और विज्ञान है। जहाँ यह माना जाता है कि परमाणु में न्यूक्लियस से आकर्षित उसके इलेक्ट्रॉन्स कक्षों (आर्बिटस) में तो रहते ही हैं लेकिन यह भी संभव है कि कोई इलेक्ट्रॉन अत्यन्त दूर रहता हुआ भी न्यूक्लियस से आकर्षित रह सकता है। ऐसा इलेक्ट्रॉन उसी परमाणु का भाग कहलाता है। यही संभावना कर्म वर्गणाओं पर लागू हो सकती है क्योंकि यह सूक्ष्म जगत का नियम है। __जैन आगम में वर्णन है कि तेरहवें गुणस्थान के जीवों के प्रथम समय कर्म बंध और स्पर्श का है और दूसरा समय में कर्म का वेदन होता है तथा कर्म-क्षय होता है अर्थात् जघन्यतम स्थिति और अनुभाग के ये अघाति कर्म के पुद्गल आकर्षित होते हैं और विकर्षित हो जाते हैं। यह तभी संभव है कि जब कर्म तन्त्रों को गति न करनी पड़े और जहाँ हैं वहीं आकर्षण-विकर्षण । हो जाए। ऐसी कर्म वर्गणाएं जघन्य वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाली होनी चाहिए। अतः हमें कर्म की इस परिभाषा को महत्त्व देना चाहिए कि कर्म . आकृष्ट हो जाते हैं - यह मूल बात है। आचारांग सूत्र में कहा है - .. 1. जो कर्म को आकर्षित करते हैं, वे उसका बन्ध करते हैं। 2. जो कर्म का बन्ध करते हैं, वे उसे आकर्षित करते हैं। 3. जो कर्म को आकर्षित नहीं करते, वे उसका बंध नहीं करते। 4. जो कर्म का बंध नहीं करते, वे उसे आकर्षित नहीं करते। आत्मा से एकाकार होने का अभिप्राय यह नहीं मानना चाहिए कि वे चिपकते ही हैं। लम्बी स्थिति और गहरे अनुभाग वाले, कर्मों के लिए आत्मा से आकर निकटता से संसर्ग करे, यह मानना उचित लगता है। लेकिन सभी कर्म प्रगाढ़, अवगाढ़ करे, इसकी आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। कर्म-बन्ध का इस दृष्टि से सोचना एक वैज्ञानिक प्रकिया का प्रारम्भ है, न कि अन्त। सूक्ष्म तंत्र सूक्ष्म पुद्गल इस लोक में खचाखच भरे है। विज्ञान के अनुसार आकाश का कोई भाग खाली नहीं है। गुरुत्वाकर्षण बल तथा फोटॉन्स् आकाश के दूरतम छोर पर भी उपलब्ध है। सूक्ष्म का नेटवर्क अत्यन्त रहस्यमय है, आज विज्ञान गणित के माध्यम से सूक्ष्मतम और बृहदतम, दोनों को जानने के प्रयास में लगा है। अतीत की प्रत्येक घटना, सूक्ष्म तन्त्र में परिवर्तित होकर, आकाश में लम्बे समय तक ठहर सकती है। इसलिए प्रयास जारी है कि हम अतीत को जान सके। इस आकाश में इतने सूक्ष्म सिस्टम्स (Systems) हर जगह उपलब्ध हैं कि हमारे किसी सोच के लिए जैसा ही पदार्थ चाहिए, तुरन्त
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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