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________________ 236] [जैन विद्या और विज्ञान शास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। यह हारमोन शरीर और मन को जितना प्रभावित करते हैं उतना प्रभावित हृदय, यकृत, स्नायु-संस्थान आदि नहीं करते। इस खोज ने मानस विश्लेषण की ओर शारीरिक विकास की विधा को दूर तक पहुंचा दिया है। हम जानते हैं कि थायराइड, शरीर के समूचे विकास को प्रभावित करती है यदि इसका स्राव ठीक नहीं है तो आदमी बौना रह जाता है शरीर कमजोर रह जाता है। भय और क्रोध की अवस्था में थायराइड का स्राव (थायरोक्सिन) समुचित नहीं होता, इसके फलस्वरूप अनेक प्रकार की शारीरिक बीमारियां उत्पन्न होती हैं। पीनियल ग्रन्थि अगर ठीक काम नहीं करती तो प्रतिभा का विकास नहीं होता एड्रिनल ग्रन्थि का स्राव समुचित नहीं होता है तो भय, चिन्ता, क्रोध उत्पन्न होता है। गोनाड़ ग्रन्थि से यौन उत्तेजना तथा शारीरिक यौन चिन्ह उत्पन्न होते हैं। कर्म शास्त्र की भाषा में जिसे हम वेद कहते हैं उससे इस ग्रन्थि का सम्बन्ध है। ग्रन्थियों के ये साव मन के विश्लेषण में उपयोगी हैं – किन्तु ये अन्तिम कारण नहीं है, अन्तिम कारण है कर्म। संक्रमण का संसार हमारे शरीर से तदाकार प्रतिकृतियाँ निकलती रहती हैं और आकाश में फैल जाती हैं। चिन्तन की भाषा की, ये प्रतिकृतियाँ हजारों-हजारों वर्षों तक उसी रूप में बनी रहती है। जैन दृष्टि से ज्ञानी व्यक्ति उन आवृत्तियों को जान सकता है और हमें अतीत की यात्रा में ले जा सकता है। कर्म के परमाणु आत्मा से छूटने के बाद आकाश में फैल जाते हैं, उस वर्ग के कर्म समूह से सम्बन्ध स्थापित कर अतीत को जाना जा सकता है। काकेसस रूस का एक भाग है। वहाँ के वैज्ञानिकों ने बताया कि काकेसस में जो भूकम्प आते हैं उनका सम्बन्ध सौर-विकिरणों से है। यह सारा संसार संक्रमण का संसार है। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य में संक्रान्त होता है। इसी प्रकार कर्मयुक्त आत्मा किसी न किसी प्रभाव क्षेत्र में रहती है। दो प्रकार की वृत्तियां मानवशास्त्र में दो प्रकार की वृत्तियों का उल्लेख है। » अन्तर्वृत्ति » बहिर्वृत्ति।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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