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जैन गणित और कर्मवाद ]
आवेग आदि आदि सभी आवेगों को समाप्त करने में आज का चिकित्सा विज्ञान सक्षम है लेकिन इसकी सीमा है । अध्यात्म-तत्त्व वेत्ताओं ने इसे आत्मिक क्रिया द्वारा सम्पन्न करने के साधन जाने हैं। जो व्यक्ति शरीर और आत्मा का भेद विज्ञान जान लेता है वह आवेगों को जीत लेता क्योंकि कर्म-प्रकृतियां अपना विपाक प्राप्त कर क्षय हो जाती है।
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परिवर्तनशीलता
इस विश्व में सब परिवर्तनशील है। भगवान महावीर ने कर्म-शास्त्र के विषय में कुछ ऐसी नई धारणाएं दी जो अन्यत्र दुर्लभ हैं या अप्राप्य हैं। उन्होंने कहा कि कर्म को बदला जा सकता है। वैज्ञानिकों में एक शताब्दी तक ये धारणायें चलती रही कि लोहा, तांबा, सोना, पारा ये सारे मूल तत्त्व हैं, इनको एक दूसरे में बदला नहीं जा सकता है। किन्तु बाद की खोजों यह प्रमाणित कर दिया कि ये सब मूल तत्त्व नहीं है। उनको एक दूसरे में बदला जा सकता है। वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि पारे के अणु का भार 200 होता है। उसे प्रोटॉन के द्वारा तोड़ा जाता है। प्रोटॉन का भार 1 है। प्रोटॉन से विस्फोटित करने पर वह प्रोटॉन पारे में घुल मिल गया और • पारे का भार 201 हो गया। 201 होते ही अल्फा का कण निकल जाता है । उसका भार 4 है। शेष 197 भार का अणु रह गया। सोने के अणु का भार 197 और पारे के अणु का भार भी 197। पारा सोना हो गया। बात प्रामाणिक हो गई कि पारे से सोना बनता है। इस परिवर्तनशीलता को स्वीकार करने से कर्मों की संक्रमण क्रिया समझ में आ जाती है।
चिकित्सा
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कर्मशास्त्र मन की गहनतम अवस्थाओं के अध्ययन का शास्त्र है । कर्मशास्त्र को छोड़कर हम मानवशास्त्र को ठीक व्याख्यायित नहीं कर सकते । अभी-अभी रूस के शरीर शास्त्रीय वैज्ञानिकों ने एक सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है मनुष्य के शरीर में जब विद्युत का संतुलन ठीक नहीं होता तब बीमारियां पैदा होती हैं । वे विद्युत की धारा के संतुलन के द्वारा, चिकित्सा . का प्रतिपादन करते हैं। कर्मशास्त्र के अनुसार, रोग का कारण केवल बाह्य नहीं है आंतरिक भी है। इस प्रश्न की खोज में कर्मशास्त्र की दिशा का अनावरण हुआ है।
ग्रन्थिविज्ञान
जैन आगम में वर्णित आत्मा की वृत्तियों से संगति बिठाते हुए आचार्य 'महाप्रज्ञ कहते हैं कि हमारे शरीर की ग्रन्थियों के स्रात्त्व जो बनते हैं वे शरीर