________________
232]
[ जैन विद्या और विज्ञान,
हमारे दो मस्तिष्क हैं ।
(1) कंडिशंड
(2) सुपर माइंड |
एक है चेतन मन और दूसरा है अचेतन मन । मनोविज्ञान की भाषा में दो मस्तिष्क हैं। एक है एनीमल माइंड (Animal Mind) व दूसरा है मानव - . मस्तिष्क (Human-Mind) । ये दो-दो विधाएं हैं।
-
मनुष्य में जो एनीमल माइंड - पाशविक मस्तिष्क है, उसमें आदिकालीन संस्कार भरे पड़े हैं। उनमें क्रोध, घृणा, यौनवासना, ईर्ष्या - ये सारे संस्कार भरे हुए हैं। इन सारे आवेगों का उत्तरदायी है मनुष्य का पशु मस्तिष्क या.. एनीमल माइंड, आदिम मस्तिष्क । दूसरा मस्तिष्क, जो बाद में विकसित हुआ है, में उदात्त भावनाएं भरी हुई हैं।
चेतन मस्तिष्क स्थूल मन है, जो शरीर के साथ काम कर रहा है और यह बुरी भावनाओं का भंडार है। दूसरा है अचेतन मन जो शक्तियों का भंडार
। कर्मशास्त्र या अध्यात्म की भाषा में कहा जा सकता है एक है विशुद्ध चेतना वाले मस्तिष्क की वह परत जो विशुद्ध चेतना का प्रतिनिधित्व करती है और एक है अशुद्ध चेतना की वह परत जो कषायी चेतना का प्रतिनिधित्व करती है। हमारी चेतना दो रूपों में काम कर रही है। एक हैं कषायित चेतना का कार्य और दूसरा है कषायमुक्त चेतना का कार्य, निर्मल चेतना का कार्य । इन्हें हम जैन तत्त्व की पारिभाषिक शब्दावली में कह सकते हैं एक है M क्षायोपशमिक मस्तिष्क और दूसरा है औदयिक मस्तिष्क । कंडिशन्ड माइंड को औदयिक मस्तिष्क कहा जा सकता है और सुपर माइंड को क्षायोपशमिक मस्तिष्क कहा जा सकता है। औदयिक मस्तिष्क कर्म के उदय के साथ चलता है, अनेक शर्तों से बंधा हुआ चलता है। यह चेतना कषाय से बंधी हुई है, कंडिशन्ड है। यह स्वतंत्र नहीं है। सुपर माइंड है निर्मल चेतना, क्षायोपशमिक चेतना । यह जागृत अवस्था है।
हमारे सामने दोनों स्थितियां हैं, दोनो मस्तिष्क हैं। एक है औदयिक भाव से बंधी हुई चेतना या मस्तिष्क और दूसरी है क्षायोपशमिक भाव से बंधी हुई चेतना या मस्तिष्क । आचार्य महाप्रज्ञ इसी विषय को विस्तार देते हुए कहते हैं कि
-
कर्म की एक प्रकृति का नाम है, ज्ञानावरणीय कर्म। यह कर्म ज्ञान पर आवरण रूप रहता है। इसके व्यवहार की समानता मस्तिष्क के विकास से