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जैन गणित और कर्मवाद]
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• दाना मिलाने से उत्कृष्ट संख्यात् होता है। हाथ का दूसरा दाना मिलाने से जघन्य परीत असंख्यात् होता है।
जघन्य परीत असंख्येय की राशि को जघन्य परीत असंख्येय की राशि से जघन्य परीत असंख्येय बार गुणा करें। जो राशि आए, उसमें से दो निकाल लें। शेष राशि मध्यम परीत असंख्येय होता है। एक और मिलाने से उत्कृष्ट परीत असंख्येय होता है। एक और मिलाने से जघन्य युक्त असंख्येय होता है। जघन्य युक्त असंख्येय की राशि को, जघन्य युक्त असंख्येय की राशि से जघन्य युक्त असंख्येय बार से गुणा करें। जो राशि प्राप्त हो, उसमें से दो निकालने पर शेष राशि मध्यम परीत असंख्येय होती है। एक मिलाने से उत्कृष्ट परीत असंख्येय होता है।
जघन्य असंख्येय असंख्येय राशि को इसी राशि से उतनी ही बार गुणा करें। जो राशि प्राप्त हो, उसमें से दो निकाल लें। शेष राशि मध्यम् असंख्येय होती है। एक मिलाने से उत्कृष्ट असंख्येय होती है। एक और मिलाने से जघन्य युक्त असंख्येय असंख्येय होती है। - ... . जघन्य युक्त अनन्त की राशि को इसी राशि से उतनी ही बार गुणा करें। जो राशि प्राप्त हो, उसमें से दो निकाल लें। शेष राशि मध्यम परीत अनन्त होती हैं एक मिलाने से उत्कृष्ट परीत अनन्त होती है। एक और मिलाने से जघन्य अनन्त अनन्त होती है। जघन्य अनन्त अनन्त से आगे की संख्या सब मध्यम अनन्त अनन्त होती है। क्योंकि उत्कृष्ट अनन्त अनन्त नहीं होता। असंख्य और अनन्त की यह कल्पित गणित, आइंस्टीन के सापेक्षवाद की गणित से कम कठिन नहीं है क्योंकि यह कहा जाता रहा है कि आइंस्टीन का गणितीय विवेचन को समझने वाले कुछ ही व्यक्ति थे। गणनात्मक संख्या के विवरण के बाद अनन्त और असंख्य पर दी गई टिप्पणियां पाठकगण के लिए प्रेषित है। अनन्त तथा असख्यात् - आचार्य महाप्रज्ञ अनन्त के संबंध में लिखते हैं कि जिसका अन्त नहीं होता उसे अनन्त कहा जाता है। जैन आगम साहित्य में अनन्त शब्द का अनेक संदर्भो में प्रयोग हआ है। संदर्भ के साथ प्रत्येक शब्द का अर्थ भी आंशिक रूप में परिवर्तित हो जाता है। द्रव्य के साथ अनन्त का प्रयोग द्रव्यों की व्यक्तिशः अनन्तता का सूचक है। गणना के साथ अनन्त शब्द के प्रयोग का संबंध संख्या से है।