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[जैन विद्या और विज्ञान
है कि संख्या 'एक' का अभिप्राय शून्य से है क्योंकि उत्कृष्ट अनन्त-अनन्त का विपरीत शून्य ही हो सकता है। इस जगत में ऐसा कुछ नहीं है जो परम शून्य हो और न ऐसा भी कुछ है जो उत्कृष्ट अनन्त-अनन्त हो। जैन गणित की यह धारणा जगत के द्रव्यों को समझने में अत्यन्त उपयोगी है। ___ संख्या के सारे विकल्पों को कल्पना के माध्यम से इस प्रकार समझ सकते हैं -
चार प्याले हैं - अनवस्थित, शलाका, प्रतिशलाका और महाशलाका । चारों प्याले एक लाख योजन लम्बे, एक लाख योजन चौड़े, एक हजार योजन गहरे, गोलाकार और जम्बूद्वीप की जगति प्रमाण ऊँचे हैं। पहले अनवस्थित प्याले को सरसों के दाने से इतना भरें कि एक दाना उसमें और डालें तो वह न ठहर सके। उस प्याले का पहला दाना जम्बूद्वीप में, दूसरा लवणसमुद्र में, तीसरा धातकीखण्ड में - इस प्रकार द्वीप और समुद्र में क्रमशः दाने गिराते चले जाएँ। (जम्बूद्वीप एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा है, लवणसमुद्र उससे दूना और धातकीखण्ड उससे दूना है, इस प्रकार द्वीप के बाद समुद्र और समुद्र के बाद द्वीप एक-दूसरे से दूना है)। असंख्य द्वीप और असंख्य समुद्र हैं। अंतिम दाना जिस समुद्र या द्वीप में गिराएँ, उस प्रमाण का दूसरी बार अनवस्थित प्याला बनाएँ। फिर उससे आगे उसी प्रकार अनवस्थित प्याले का एक-एक दाना गिराते जाएँ। (एक बार अनविस्थत प्याला खाली हो जाए तो एक दाना शलाका प्याले में डालें।) इस क्रम से एक-एक दाना डाल कर शलाका प्याले को भरें। शलाका प्याला इतना भर जाए कि उसमें एक दाना भी और डालें तो वह उसमें न टिक सके। एक बार शलाका प्याला भरने पर प्रतिशलाका में एक दाना डालें। जब इस क्रम से प्रतिशलाका प्याला भर जाए तो एक दाना महाशलाका प्याले में डालें। इस क्रम से महाशलाका प्याला भरने के बाद प्रतिशलाका भरें, फिर शलाका प्याला भरें, फिर अनवस्थित प्याला भरें। दूसरे रूप में इसे सरलता से इस प्रकार समझ सकते हैं।
अनवस्थित प्याला - एक दाना शलाका शलाका प्याला
एक दाना प्रतिशलाका प्रतिशलाका प्याला - एक दाना महाशलाका
चारों प्यालो के भर जाने के बाद सब दानों का एक ढेर करें। उस राशि में से दो दाने हाथ में लें। शेष ढेर मध्यम संख्यात है। हाथ का एक .