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[ जैन विद्या और विज्ञान ,
तो क्या यह माना जाए कि बर्फ में ताप शून्य हो गया? ऐसा नहीं है। तब हम ताप की ऐब्सोल्यूट स्केल का प्रयोग कर बताते हैं कि इसमें 273°K ताप है। लेकिन 0°K को किस प्रकार समझाएं क्योंकि ऐसी कोई वस्तु या घटना नहीं होती जहां °K ताप होता है। °K का अभिप्राय परम शून्य से है। विज्ञान के क्षेत्र में OK की स्पष्ट धारणा बनी हुई है कि यह ताप केवल औपचारिक है, वास्तविक नहीं। इस ताप पर परमाणु का आकार शून्य हो जाता है और भौतिक शास्त्र का कोई नियम प्रभावी नहीं रहता। अतः यह स्थिति कभी प्राप्त नहीं होती है। इस चिन्तन से हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि वस्तु में जब तक उसके गणधर्म रहते हैं तब तक वह परम शून्य ताप पर नहीं पहुंचता। हमने ताप के संबंध में जाना है कि परमाणु का ताप कभी शून्य नहीं हो . . सकता। यही मान्यता जैन दर्शन के मूल द्रव्यों के लिए है इसलिए यहां शून्य की गणितीय धारणा स्वीकृत नहीं है। शून्यवत अंश को 'एक' कहा गया है। इसी कारण से जैनों ने 'एक' को संख्या तो कहा लेकिन उसे गणना संख्या में स्वीकार नहीं किया।
2. दूसरे उदाहरण में प्रकाश के सूक्ष्मतम कण फोटॉन की हम निम्न प्रकार से चर्चा करेंगे। (i) फोटॉन का कण गतिहीन (rest) अवस्था में शून्य द्रव्यमान
(massless) कहा गया है। लेकिन इस कथन को केवल काल्पनिक
माना गया है। (ii) फोटॉन जब गति में होता है तो उसकी गति प्रकाश की गति ___ के समान होती है। ऐसे में उसके द्रव्यमान की गणना नहीं की
जा सकती। अतः विज्ञान जगत में यह स्वीकार किया गया कि शून्य द्रव्यमान वाले कण ही प्रकाश की गति प्राप्त कर सकते हैं तथा कोई भी अन्य कण अगर शून्य से किंचित अधिक द्रव्यमान का है तो वह प्रकाश की गति प्राप्त नहीं कर सकेगा।
ऐसी स्थिति में यह माना जाता है कि फोटॉन का काल्पनिक शून्य द्रव्यमान सदैव द्रव्यमान प्राप्त करने की प्रवृत्ति (tends to) में रहता है। अतः फोटॉन का द्रव्यमान उसके स्थिर अवस्था में शून्य होकर भी पूर्ण रूप से . शून्य नहीं है। वैज्ञानिक जगत का यह निष्कर्ष आश्चर्य रूप से जैन भगवती सूत्र के इस वाक्य से समानता रखता है कि जो चलने को प्रवृत्त हो गया