SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन गणित और कर्मवाद ] > कति > अकति > अवक्तव्य आचार्य महाप्रज्ञ ने गणित इस अछूते विषय पर श्वेताम्बर और दिगम्बर, दोनों के साहित्य के आधार से विस्तृत टिप्पणी दी है जो पाठकों के लिए प्रस्तुत है । श्वेताम्बर परम्परा [ 215 1. कति शब्द का अर्थ है, कितना । यहां यह संख्येय के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अर्थात् दो से लेकर संख्यात तक । 2. अकति का अर्थ असंख्यात और अनन्त से है । 3. अवक्तव्य का अर्थ 'एक' संख्या से है। उत्तराध्ययन और अनुयोगद्वार सूत्र के आधार पर उल्लेख किया गया है कि एक संख्या, को गणना संख्या नहीं माना है। जैन आगमों में जघन्य (minimum) गणना संख्या दो मानी गई है। इसकी विवेचना आवश्यक है, जो आगे के पृष्ठों में की गई है। दिगम्बर परम्परा दिगम्बर परम्परा में कति शब्द के स्थान पर कदी शब्द आया है। उसका अर्थ कृति किया गया है। कृति शब्द की गणितीय व्याख्या जो की गई है, वह श्वेताम्बर परम्परा से भिन्न है। कृति के संबंध में वर्णित है कि जो राशि वर्गित होकर वृद्धि को प्राप्त होती है और अपने वर्ग में से, अपने वर्ग के मूल को कम कर, पुनः वर्ग करने पर वृद्धि को प्राप्त होती है, उसे कृति कहा है। कृति की, नोकृति और अवक्तव्य से भिन्नता दर्शाते हुए कहा है 1. नोकृति (i) 'एक' संख्या का वर्ग करने पर वृद्धि नहीं होती (1)2 = 1 x 1 = 1 (ii) इसमें से वर्ग के मूल को कम करने से वह निर्मूल नष्ट हो जाती है। 1-1 = 0 (iii) 0 अर्थात् शून्य का वर्ग करने पर कोई वृद्धि नहीं होती । 02 = 0x0 = 0 इस कारण संख्या एक को नोकृति कहा है ।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy