________________
जैन गणित और कर्मवाद ]
60 + 10 = 6 बेध हुआ परिधि 60 + 6 = 10 इसका वर्ग 10 x 10 = 100 हुआ। 100 × 6 वेध = 600 घनहस्तफल होगा।
-
5. कलासवर्ण – जो संख्या पूर्ण न हो, अंशों में हो- उसे समान करना 'कलासवर्ण' कहलाता है। इसे सम्च्छेदीकरण, सवर्णन और समच्छेदविधि भी कहते हैं। (हिन्दू गणिशास्त्र का इतिहास, पृष्ट 179 ) । संख्या के ऊपर के भाग को अंश और नीचे भाग को 'हर' कहते हैं
जैसे 1/2 और 1/3 है । इसका अर्थ कलासवर्ण 3/6; 2/6 होगा । इसे गुणकार भी कहते हैं ।
6. यावत् तावत्
पहले जो कोई संख्या सोची जाती है उसे गच्छ कहते हैं। इच्छानुसार गुणन करने वाली संख्या को वाञ्छ या इष्ट संख्या कहते हैं ।
I
गच्छ संख्या को इष्ट- संख्या से गुणन करते हैं । उसमें फिर इष्ट मिलाते हैं । उस संख्या को पुनः गच्छ से गुणा करते हैं। तदनन्तर गुणनफल में इष्ट के दुगुने का भाग देने पर गच्छ का योग आता है। इस प्रक्रिया को 'यावत् तावत्' कहते हैं।
[211
•
जैसे कल्पना करो कि इष्ट 16 है, इसको इष्ट 10 से गुणा किया 16 x 10 = 160 | इसमें पुनः इष्ट 10 मिलाया (160+10 = 170 ) । इसको गच्छ से गुणा किया (170 × 16 = 2720) इसमें इष्ट की दुगुनी संख्या से भाग दिया 2720 + 20 = 136, यह गच्छ का योगफल है। इस वर्ग को पाटी गणित भी कहा जाता है।
-
7. वर्ग वर्ग शब्द का शाब्दिक अर्थ है 'पंक्ति' अथवा 'समुदाय' । परन्तु गणित में इसका अर्थ 'वर्गघात' तथा 'वर्गक्षेत्र' अथवा उसका क्षेत्रफल होता है। पूर्ववर्ती आचार्यों ने इसकी व्यापक परिभाषा करते हुए लिखा है 'समचतुरस्त्र' (अर्थात वर्गाकार क्षेत्र) और उसका क्षेत्रफल वर्ग कहलाता है। दो समान संख्याओं का गुणन भी वर्ग है । वर्ग के अर्थ में कृति शब्द का प्रयोग भी मिलता है, परन्तु बहुत कम । इसे समद्विराशिघात भी कहा जाता है । भिन्न-भिन्न विद्वानों ने इसकी भिन्न-भिन्न विधियों का निरूपण किया है।
8. घन इसका प्रयोग ज्यामितीय और गणितीय - दोनों अर्थों में अर्थात ठोस घन तथा तीन समान संख्याओं के गुणनफल को सूचित करने में किया गया है। आर्यभट् प्रथम का मत है तीन समान संख्याओं का गुणनफल तथा बारह बराबर कोणों (और भुजाओं) वाला ठोस भी घन है।
―