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जैन गणित और कर्मवाद]
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ने मौलिक माना हैं ये परिकर्म हिन्दू ग्रन्थों में नहीं मिलते। ये परिकर्म उन लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण थे जो दशमलव पद्धति से अनभिज्ञ थे।
2. व्यवहार – ब्रह्मदत्त के अनुसार पाटीगणित में आठ व्यवहार हैं -
» मिश्रक-व्यवहार . > श्रेढी-व्यवहार
» क्षेत्र-व्यवहार > खात-व्यवहार » चति-व्यवहार > क्राकचिक-व्यवहार. » राशि-व्यवहार » छाया-व्यवहार।
पाटीगणित - यह दो शब्दों से मिलकर बना है -(1) पाटी और (2) गणित । अतएव इसका अर्थ है वह गणित जिसको करने में पाटी की आवश्यकता पड़ती है। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक कागज की कमी के कारण प्रायः पाटी का ही प्रयोग होता था और आज भी गांवों में इसकी अधिकता देखी जाती है। लोगों की धारणा है कि यह शब्द भारतवर्ष के संस्कृतेतर साहित्य से निकलता है, जो कि उत्तरी भारतवर्ष की एक प्रान्तीय भाषा थी। "लिखने की पाटी' के प्राचीनतम संस्कृत पर्याय ‘पलक और ‘पट्ट' हैं, न कि पाटी। . पाटी' शब्द का प्रयोग संस्कृत साहित्य में प्रायः 5 वीं शताब्दी से प्रारम्भ हुआ। गणित-कर्म को कभी-कभी धूली कर्म भी कहते थे, क्योंकि पाटी पर धूल बिछा कर अंक लिखे जाते थे। बाद के कुछ लेखकों ने 'पाटी गणित' के अर्थ में 'व्यक्त गणित' का प्रयोग किया है, जिसमें कि बीजगणित से, जिसे वे अव्यक्त गणित कहते थे पृथक समझा जाए। जब संस्कृत ग्रन्थों का अरबी में अनुवाद हुआ तब पाटीगणित और धूली कर्म शब्दों का भी अरबी में अनुवाद कर लिया गया। अरबी के संगत शब्द क्रमशः 'इल्म-हिसाब-अलतख्त' और 'हिसाबअलगुवार' है।
पाटीगणित के कुछ उल्लेखनीय ग्रन्थ (1) वक्षाली हस्तलिपि (लगभग 300 ई.). (2) श्रीधरकृत पाटी गणित और त्रिशतिका (लगभग 750 ई). (3) गणित सार संग्रह (लगभग 850 ई.), (4) गणित तिलक (1039 ई), (5) लीलावती (1150 ई.). (6) गणितकौमुदी (1356 ई.), और मुनिश्वर कृत