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[ जैन विद्या और विज्ञान
गणित के प्रकार
स्थानांग सूत्र में संख्यात पद में गणित के दस प्रकार निर्दिष्ट हैं । आचार्य महाप्रज्ञ ने इस गणितीय विद्या पर विस्तृत टिप्पणी प्रस्तुत की है, जो पूर्णता लिए हुए हैं। गणित की यह प्राचीन भारतीय पद्धति पाठकगण के लिए रुचिकर होगी।
1. परिकर्म
यह गणित की एक सामान्य प्रणाली है। भारतीय प्रणाली में मौलिक परिकर्म आठ माने जाते हैं -
(1) संकलन (जोड़)
( 3 ) गुणन (गुणन करना)
(5) वर्ग (वर्ग करना)
(7) घन (घन करना)
(1) संकलित
(3) गुणन (5) वर्ग
(7) धन
(2) व्यवकलन (बाकी)
(4) भाग ( भाग करना)
( 6 ) वर्गमूल ( वर्गमूल निकालना)
( 8 ) घनमूल (घनमूल निकालना) ।
इन परिकर्मों में से अधिकांश का वर्णन सिद्धान्त ग्रन्थों में नहीं मिलता। ब्रह्मगुप्त के अनुसार पाटी गणित में बीस परिकर्म हैं
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(2) व्यवकलित अथवा व्युत्कलिक
(4) भागहर
(6) वर्गमूल
(8) धनमूल
(9-13) पांच जातियां' (पांच प्रकार के भिन्नों को सरल करने के नियम )
(14) त्रैराशिक
(15) व्यस्तत्रैराशिक
(16) पंच राशिक
(17) सप्तराशिक
(18) नवराशिक
(19) एकदसराशिक
(20) भाण्ड - प्रति भाण्ड ।
प्राचीन काल से ही हिन्दू गणितज्ञ इस बात को मानते रहे है कि गणित के सब परिकर्म मूलतः दो परिकर्मो संकलित और व्यवकलित पर आश्रित हैं। द्विगुणीकरण और अर्धीकरण के परिकर्म जिन्हें मिस्र, यूनान और अरब वालों