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[ जैन विद्या और विज्ञान
नहीं जा सकती क्योंकि दोनों के बीच असंख्यात या अनन्त का स्पष्ट अंतर आ जाता है।
(iii) यही स्थिति आकाश के संबंध में है । स्थानांग सूत्र में आकाश प्रदेशों की श्रेणियों का निम्न प्रकार से वर्णन उपलब्ध है। श्रेणी का अर्थ आकाश प्रदेश की वह पंक्ति जिसके माध्यम से जीव और पुद्गलों की गति होती है। जीव और पुद्गल श्रेणी के अनुसार ही गति करते हैं एक स्थान से दूसरे स्थान में
जाते हैं। श्रेणियां सात हैं
1.
2.
3.
4.
ऋजु-आयत
एकतोवा
द्वितोवा
एकतःखहा
द्वितः खा
ऋजु - आयता
एकतोवक्रा
द्वितोवक्रा
5.
6.
चक्रवाला
7.
अर्द्धचक्रवाला
इन सात श्रेणियों का उल्लेख भगवती सूत्र में हुआ है। इन सात श्रेणियों
की स्थापना इस प्रकार है
श्रेणी
चक्रवाला
एकतःखहा
द्वितः खहा
अर्द्धचक्रवाला
-
-
स्थापना
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