SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन गणित और कर्मवाद] [205 आकाश प्रदेश भी दो प्रकार के मान लें तो समस्या हल हो सकती हैं लेकिन सूक्ष्म आकाश प्रदेश और स्थूल आकाश प्रदेश जैसा विवरण उपलब्ध नहीं है। प्रकारान्तर से आचारांग-नियुक्ति में यह वर्णन आया है कि अंगुल प्रमाण आकाश में जितने आकाश प्रदेश हैं, उनमें से यदि एक एक समय में एक एक आकाश प्रदेश का अपहरण किया जाये तो उस क्षेत्र को खाली होने में असंख्यात् उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी काल बीत जाएगा। यह रूपक नहीं है अपितु वास्तविक स्थूल आकाश प्रदेश और सूक्ष्म आकाश प्रदेश के भेद को प्रकट कर रहा है। अतः अंगुल. प्रमाण आकाश को स्थूल आकाश की इकाई और आकाश-प्रदेश को सूक्ष्म आकाश की इकाई कहा जा सकता है। जैन दृष्टि से इस ब्रह्माण्ड में पदार्थ, सूक्ष्म और स्थूल दो प्रकार का है। उनमें गहरी भिन्नता है। सूक्ष्म जगत के माप, स्थूल जगत के माप नहीं हैं और जब सूक्ष्म माप, स्थूल माप बनते हैं तो वे असंख्य या अनन्त के समूह में संयुक्त होकर परिवर्तन कर पाते हैं। उपर्युक्त विवेचन से निम्न परिणाम प्रकट होते हैं - . (i) हमने जाना है कि अनन्त सूक्ष्म परमाणु से, एक व्यवहार परमाणु बनता है। इसका अभिप्राय है कि संख्यात या असंख्यात सूक्ष्म परमाणु अगर संयुक्त भी होते हैं और किसी स्कन्ध की रचना करते हैं तो भी वे व्यवहार या स्थूल जंगत में उपयोगी नहीं हैं। अनन्त के समूह में संयुक्त होकर, सूक्ष्म जगत से स्थूल जगत के निर्माण में उपयोगी होने का यह विवरण केवल जैन साहित्य की विशेषता है। यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि आज विज्ञान के क्षेत्र में क्वांटम का सिद्धान्त सूक्ष्म पदार्थ के लिए यही बात कहता है कि ऊर्जा का आदान-प्रदान क्वांटम (समूहगत) में ही संभव .. है। इन्हें क्वांटम पैकेट्स (Packets) कहा जाता है। (ii) काल के विवरण में भी यही बात स्पष्ट होती है कि असंख्यात . समय से एक आवलिका का माप बनता है। कोई भी संख्यात गणना, सूक्ष्म समय को स्थूल समय में परिवर्तित नहीं करती। ये परिणाम हमें सावधान करते हैं कि किसी भी घटना को जानने के लिए पहले यह सुनिश्चित कर लें कि यह घटना सक्ष्म जगत की है या स्थल जगत की। सक्ष्म जगत के विवरण में स्थूल जगत के माप लागू करने से या स्थूल जगत विवरण में सूक्ष्म जगत के माप लागू करने से घटना कभी समझी
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy