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________________ जैन गणित और कर्मवाद] [ 203 मापने के लिए परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की गति का सहारा लिया। इसके लिए शोध दल ने चरम पराबैंगनी किरणों की मदद से परमाणु के इलेक्ट्रॉनों को उत्तेजित किया। इलेक्ट्रॉन प्रत्येक पदार्थ के मूलभूत कण हैं और इन पर ऋणात्मक आवेश होता है। वीन टेक्नीशे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फेरेंक क्रूज के अनुसार, कुछ इलेक्ट्रॉन इतने त्वरित हुए कि उन्होंने स्थाई रूप से परमाणु को छोड़ दिया। वैज्ञानिकों ने फ्यूसाइकल लेजर उपकरण से इन इलेक्ट्रॉनों के ट्रोमोग्राफिक चित्र लिए। इसी दौरान “ऐटो सेकंड" के सौंवे हिस्से में होने वाली गतिविधि का पता चला। इस शोध से अत्यंत सुग्राही घड़ियां बनाने में सहायता मिल सकती है। वर्तमान घड़ियां माइक्रोवेव आवृत्तियों पर काम करती हैं, जबकि इस शोध से ऑप्टिकल आवृत्तियों पर काम करने वाली घड़ियों के निर्माण की राह आसान हो सकती है जिनमें लेजर का इस्तेमाल होता है। ___वैज्ञानिक सूक्ष्मतम समय को जानने के लिए अनेक प्रयोग कर रहे हैं। अभी तक विज्ञान में वर्णित समय (Time) जैन दर्शन का व्यवहार काल ही प्रतीत होता है। विज्ञान में एक समय को टाइमान (Timon) कहा है वह भी व्यवहार काल का ही न्यूनतम मान है। पुद्गल और काल के सूक्ष्मतम अंश निश्चय परमाणु और समय को जानने के बाद पाठक-गण को आकाश के सूक्ष्मतम अंश को जानना आवश्यक है। हम यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि क्या आकाश की भी स्थूल और सूक्ष्म दो इकाईयां बन सकती हैं ? आगम साहित्य में आकाश, काल और पुद्गल के सूक्ष्मतम अंशों की परस्पर में समतुल्यता बताते हुए उनके जघन्य और उत्कृष्ट दोनों स्वरूपों को प्रकट किया है। आकाश-परमाणु आकाश प्रदेश के जघन्य स्वरूप को प्रकट करते हुए कहा है कि एक परमाणु आकाश में जितनी जगह घेरता है वह आकाश का सूक्ष्मतम कल्पित अंश हैं तथा आकाश प्रदेश के उत्कृष्ट स्वरूप को प्रकट करते हुए कहा है कि एक आकाश प्रदेश में अनन्त स्कन्ध एक साथ ठहरे हुए हैं। इन दोनों कथनों में विरोधाभास प्रकट होता है। यह कैसे सम्भव हो सकता हैं कि एक आकाश प्रदेश में जहां केवल एक परमाणु ठहरता हैं वहां अनन्त परमाणु भी ठहर सकते हैं ? अतः यह सुनिश्चित हैं कि यह आकाश प्रदेश की परिभाषाएँ नहीं है। यह पुद्गल अवगाहन की दृष्टि से आकाश की जघन्य और उत्कृष्ट
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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