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[जैन विद्या और विज्ञान
इसी प्रकार कृष्ण-राजिओं के आकारों के वर्णन में त्रिकोणी, षड़कोणी तथा चौकोर पृथ्वियां बताई हैं। ये ज्यामिति के आकार वे ही हैं जो वैदिक काल में प्रचलित थे। यह इस बात की पुष्टि करता है कि वैदिक ज्यामिति और जैन ज्यामिति दोनों का उद्गम स्रोत भारतीय गणित रहा है। अतः यह मानना न्यायसंगत है कि जैन गणित और वैदिक गणित समानांतर धारा के. रूप में विकसित हो रही थी।
पाठकगण पायेंगे कि ज्यामिति के विषय इस पुस्तक में संबंधित अध्यायों में वर्णित हुए हैं। यहां हम गणना संबंधी जैन गणित के आधारभूत तथ्यों की गवेषणा करेंगे। जघन्य और उत्कृष्ट (Minimum and Maximum)
जैन साहित्य में लोक के छह मौलिक द्रव्यों के अध्ययन में संख्यात, असंख्यात और अनन्त की गणित का उपयोग करते हुए द्रव्यों की परस्पर की तुलना में जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट में वर्गीकरण किया है। स्थानांग सूत्र में कालखण्ड की अभिव्यक्ति में अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी को जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट बताया है। योनि-स्थिति के वर्णन में पृथ्वीकाय की योनि को जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट तीन वर्ष की बताई है। इस प्रकार अनेक स्थलों पर द्रव्यों के परस्पर प्रभाव को स्पष्ट करते हुए जघन्य और उत्कृष्ट का विशेष वर्णन हुआ है। आधुनिक गणित में जघन्य और उत्कृष्ट का उपयोग उच्च गणित का विषय है इससे ज्ञात होता है कि 2000 वर्ष पूर्व भी जैन . गणित समृद्ध अवस्था में थी। सूक्ष्मतम अंश
गणितीय चर्चा में जाने से पूर्व छह द्रव्यों के सूक्ष्मतम अंशों को निम्न सारिणी से समझने का प्रयत्न करेंगे क्योंकि इन्हीं के आधार पर गणित का विकास हुआ है।
द्रव्य
सूक्ष्मतम अंश
पुद्गल
परमाणु
| 2. | का
समय
धर्म, अधर्म, आकाश, जीव
प्रदेश (अविभागी) .