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आगम और विज्ञान]
पण्णवणा और जीवाभिगम में अनाहारक के दो समय का उल्लेख है । इन दोनों सूत्रों के टीकाकार मलयगिरि हैं। उनके अनुसार यह सूत्र सापेक्ष है। बहुलतया दो समय या तीन समय की विग्रहगति होती है। इस अपेक्षा से अनाहारक अवस्था के दो समयों का उल्लेख किया गया है।
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पण्णवणा और जीवाजीवाभिगम में अनाहारक के दो समय का उल्लेख है । इस आधार पर सिद्धसेनगणी और जयाचार्य ने चार समय की विग्रह गति में प्रथम समय को आहारक बतलाया। किंतु अभयदेवसूरि ने जो तर्क प्रस्तुत किया है, उसका समाधान सरल नहीं है। उनका तर्क है कि उत्पत्ति स्थान तक पहुंचे बिना अन्तरालगति में आहार योग्य पुद्गलों का अभाव है, इसलिए विग्रह गति का पहला समय अनाहारक होगा । और तीन समय वाली गति में यदि प्रथम समय अनाहारक हो तो चार समय की गति में प्रथम समय आहारक कैसे होगा ? सिद्धसेनगणी ने विग्रहगति के सभी प्रकारों प्रथम समय को आहारक माना है। यह एकरूपता की दृष्टि से तर्क-संगत है। किंतु प्रस्तुत सूत्र से इसकी संगति नहीं है। प्रस्तुत सूत्र के अनुसार प्रथम समय अनाहारक भी होता है। अभयदेवसूरि ने उत्पत्ति स्थान के पूर्ववर्ती सभी समयों को अनाहारक माना है। यह तार्किक दृष्टि से संगत है। दो समय और तीन समयों की अन्तरालगति में प्रथम समय को अनाहारक माना जाए तथा चार अन्तरालगति में प्रथम समय को आहारक माना जाए - यह क्यों ? इसके पीछे कोई तर्क नहीं हैं। केवल आगम का यह वचन है कि अन्तरालगति में जीव दो समय से अधिक अनाहारक नहीं रहता। मलयगिरि ने इस समस्या . को सापेक्षता से सुलझाया है, इसलिए इस सापेक्ष दृष्टिकोण को स्वीकार करने में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।
समय
उपर्युक्त वर्णन, परमाणु की अस्पृशद गति के अध्याय में भी हुआ है लेकिन वहां आहार की चर्चा नहीं हुई है। यहां एक सहज जिज्ञासा होती है कि अन्तराल गति में जब चार समय लगते हैं तो कहीं यह लोकाकाश भी चार आयामी तो नहीं है ?
आकाश के चार आयाम
भौतिक शास्त्र में आकाश के तीन आयामों को किसी घन (Cube) के चित्र से दर्शाया जाता है। रूसी दार्शनिक वान मानेन ने इस प्रयास को अधूरा बताते हुए सुझाव दिया है कि चेतना के चौथे आयाम के अभाव में किसी घटना को पूर्णरूप से नहीं समझा जा सकता है। आइंस्टीन ने काल